एक क्लास
नींद नही आती आज कल आखो मे जो धुआ था आज बर्फिली धुप बन गया इतना प्यारा नगमा है की ये पलके भी मिटती नही आज कल ऐसा लगता है जजिरा मिल गया जहा जुगनु की रंगीन ‘रोशनी’ से ‘सृष्टी’ झुम जाती हो जहा हरियाली इतनी सजी हो की लगे ‘पूजा’-पाठ कर रही है दिगंत पर जहा ‘शुभांगी’सी हसीन शजर अपनी खुशबू को ‘मल्लिका’ के गंधसी गुजरते पलों मे मिला ती हो जहा चांद का जमाल भी ऐसा उतरता हो जमिन पर जैसे ‘अरुषी’ आती है सुरज से जहा ‘निशी’ के साथ बेखौफ हो रंजनीगंधा जो जिवित है ‘आयुशी’ की तरहा, बेहती है कस्तुरीसी जहा हो ओस की ‘मिहिका’, झरने की जीवीका जहा हो आशियाना ‘अनिकेत’ की शाश्वती से भरा जहा दवाग्नी भी ‘प्रार्थना’ करता हो मेघाओं के राजा ‘मेघन’ से जिसकी ‘आस्था’ ‘राघव’ के जिवनसी पवित्र है जहा सबको हो स्मरण खुद के ऐहसास का जिसे ‘सिमरन’ कहते है जहा हो ‘अभिरुची’ शांती की, ईच्छा ‘मनिष’ की, सुंदरता ‘प्रियांका’ की जहा हो ‘मेहेक’ खेतों मे खिले पिले सोने की, शहदसी मधुरता हो ‘मधुनिका’ की जहा हो तेज ‘आदित्य’ का, मन ‘मानसी’ का, सुर ‘सानिका’ का जहा हो 'कबीर'सा कोई संत जिसका ना हो कोई ईमान, जिसक...