माँ
कभी हम भी थे बद्सुरत मॉ ने टिका लगाया, हम खुबसुरत बन गये लोग कहते है इंसानी दौड मे तुम बुढे हो गये मॉ ने माथे पे चुम लिया देखो हम फिर से बच्चे बन गये मै पढता था रातभर और माँ रोशनी जलाया करती थी यहा दिये जलते है हजारो पर ओ रोशनी नही दिखती ये रिश्ता कुछ अजिबसा है मै होता हु मायुस यहा पलके उसकी होती है गिली मेरी माँ शगुफ्ता है मेरे गम के लिये मन मे है रोती माँ, तू कौन है ? अनदेखा विश्वास नास्तिक का, अक्स अफ्ताब का या साया कल्पनाओं का? माँ, तू है वक्त मेरे साथ दौडता हुआ माँ, तेरी गोदी मे ही मेहेफुज था अब अकेला हु डराडरासा आना है तेरी आगोश में फिरसे रोना है दिलो-जान से माँ, तेरी लोरी में फरिश्ते आते थे सुलाने भगवान कि तस्वीरे लगाई लेकिन क्या करे, नींद ही नही आती