मैं 'तू' बन जाऊ....

चेहरे की नुमाइंदगी करता ओस का बुलबुला बन जाऊ
मै चेहरे की मासुमियत छुती बारिश की बुंद बन जाऊ

पलकों को अपनी गर्म बाहो में समेटती शाम बन जाऊ
मै इन आँखो की मेहेरबानी लेने रंगीन तितली बन जाऊ

बालों को अपने कंधोपर लहरता हवा का झोका बन जाऊ
भौह की अदाओ को समाने मैं तेरा माथा बन जाऊ

तु पास होने का एहसास दिलाती तस्वीर बन जाऊ
तु छुने की निशाणी, मै जमीन की मिट्टी बन जाऊ

होली में तेरे गालो पर खिलता कोई रंग बन जाऊ
मै तूने दिवाली में लगाया जलता दिया बन जाऊ

तेरी आवाज को सुनेने मै सुमसान जंगल बन जाऊ
तेरी धुंध में नाचणे मैं भी नाचती रागिणी बन जाऊ

जहा तेरा आना जाना है उस गली का मैं पत्थर बन जाऊ
तुजपर नजर रखे रात का चांद, दिन का सुरज बन जाऊ

तू जब आये किनारे पे, तेरी ओर खिचती लहरे बन जाऊ
तू भिग जाये बारिश में, में काले बादल बन जाऊ

तू चले तो मैं चाल बन जाऊ
तू रुके तो रुकावट बन जाऊ
चीड जाये तो घुस्सा बन जाऊ
तेरी हसी की मैं मुस्कान बन जाऊ
तेरी जख्म का मैं मरहम बन जाऊ
तेरे अश्कों का खारापन बन जाऊ

तू है ओ जहाँ बन जाऊ
और ना हो वहा मैं 'तू' बन जाऊ....









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