पापा
पापा, तुम ही बताओ तुम्हे लब्जों बयान कैसे करू? ओ नजर जो चेहरा पढती है, ओ आवाज जो सहारा देती है, ओ आसू जो दिखते नही है, ओ डाट जो जल्दी पिघलती है, ओ दर्द जो हसी के पीचे छुपा है, ओ एहसास जो एक साया है, इन्ह सब को तुम ही बताओ पापा कागज पर कैसे उतारू? पापा, तुम ही बताओ तुम्हे लब्जों बयान कैसे करू? पापा, कागज पर लिखी जाती है कहाणीया, उतारी जाती है कल्पना, तुम तो हकीकत हो, सुरज से तेज, सागर से गहरी और आसमान से विस्तृत.. जो हकीकत मुझे जिंदा रखती है, पापा तुम ही बताओ उसे मै कैसे बताऊ पापा, तुम ही बताओ तुम्हे लब्जों बयान कैसे करू