हसी

हसी की शागिर्दी दिखाई दे ऐसी बात है ये
चौदहवे दिन पर राज करे ऐसी रात है ये

दो अल्फाजों की ये सरगोशियां है लेकिन
घुंगट मे छुपे मोगरे के गंध सी शांत है ये

कितनी की हमने हमारे जमिर से गुफ्तगु
दिल टकराये किसि से ऐसा आघात है ये

खुद की आंधीओं मे खुद का आशियाना टुटा
ये आंधी हो जिसपर निसार ओ प्रांत है ये

बातों की ये माशुका, उसके लबों का सफर
हजारो मुसाफिर समाले इतनी प्रशांत है ये

मेघदुत बने विवेक को कोई सुरत नही यहा
ओस की बुंदे बिंदिया जिसकी ओ प्रात है ये


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