मॉ

और एक सुबहा,
रात की गोद मे खेलते खेलते
रोशन हो गयी...
उस रात का
सागर की लहरों के साथ लोरी गाना
सुबह को हवा के झुले पे
झुला झुलाना
अब आखिरकार बंद हो गया
सुबहा रोशन जो हो गयी

लोग कहते है
कितनी हसीन है ये सुबह
सारी बद्सुरती तो रात ने लेली
ये रोशनी, रात का तेज है
जो सुबह को दान मे मिला
सच तो ये है की
रात का मुखडा कोई देख ना सका
मॉ की खुबसुरती दिखाये
ऐसा आईना कोई ना बना सका

सुबह का रात से दुर जाना
कोई नयी बात नही
मै भी दुर हु बहोत मेरी मॉ से
फरक इतना है
उन्ह दोनो मे है बस एक दिन का फासला
और इस दुरी की नही है कोई इन्तेहा



टिप्पण्या

या ब्लॉगवरील लोकप्रिय पोस्ट

Atheist having spiritual experience

माझ जग

Day one...