कोई नही

तेरे सोहबत मे आंखों से ज्यादा बिमार और कोई नही
तेरे लिये मेरे दिल से दृढ खुद्दार और कोई नही

ये कल्ब भी गिन गया आसमान के तारे
तेरी अदाओं इतना बेशुमार और कोई नही

कदर करता था बहुत इस जिस्म की
तेरे लबों से बडा गद्दार और कोई नही


मै दूर हु बहुत खुद से, जितनी तू है मुजसे
तन्हाई जैसा मेहफूस यार और कोई नही

रात मे पानी का रंग काला तो रोशनी बने अंधेरा
तेरे साथ विरानगी जैसी बुरी हार और कोई नही

अपने बनकर अपने नही होते कुछ लोग जो अपनेपन मे फसे है
मैने खोया है विवेक अभी, इससे विशाल प्यार और कोई नही







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