रात..

रात हो रही है
दिया जल रहा है
डर उस रात का नही..
डर इस बात का है की
सुबह से पहले दिया न बुझ जाये
धडकने तेज हो रही है बढते अंधेरे मे
चार दिवारों मे बंद मै और मेरा साया
गुफ्तगू करते करते थक गये
अब देख रहा हु खिडकी के बाहर
यहा एक शजर थी
फुल खिला था कल..
आज क्यु मुरझा गयी?
शायद फुल तोडा होगा किसीने
दिल टुटने का गम दिवारों के अंदर भी है
और बाहर भी
हवा के लहरों का नशा आखोंपर चढ रहा है
पलके अब मिट रही है
दिया अभीभी जल रहा है
चार दिवारों मे हर रात
नयी कहानी जन्म लेती है
मै पढता हु
मेरा साया सुनता है
जब तक दिया जल रहा है,
मै कहानी पढाता रहता हु
साया सुनता रहता है
जब दिया बुजता है
साया खो जाता है कही अंधेरे मे
और मै सो जाता हु किसी कहाणी मे

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