मै खाली किताब बन जाता हु
जहा घर था मेरा
वहा शाम आती है सुबह सुबह
शाम होते ही चली जाती है
मै घर की चौकट बन जाता हु
कल तक खुरदरी थी जमिन,
सुना है वहा नदी बहती है
खत लिखने का जमाना गुजर गया
मै अभी भी कलम ढुंढ रहा हु
पता नही किस रास्ते पर हु
पता नही हातों की लकिर है की राह कोई
लकिरे नींदसी गहरी है,
मै तकिया बन जाता हु,
बादल छूते है पहाड
या पहाड निगल जाता है आसमान
बुंदे बरसती है राहो में
मैं बहता लावा बन जाता हु
रोशनी पत्तोंपर कुछ लिहिती है
और मिठ्ठी जमिनपर
जिंदगी रंगीन स्याही है
मै खाली किताब बन जाता हु
हर रोज मै मिलता हु
मेरे जैसे किसी अंजान से
ओ मुस्कुराते हुए दुर जाता है
मै कल के सोच मे डुब जाता हु
वहा शाम आती है सुबह सुबह
शाम होते ही चली जाती है
मै घर की चौकट बन जाता हु
कल तक खुरदरी थी जमिन,
सुना है वहा नदी बहती है
खत लिखने का जमाना गुजर गया
मै अभी भी कलम ढुंढ रहा हु
पता नही किस रास्ते पर हु
पता नही हातों की लकिर है की राह कोई
लकिरे नींदसी गहरी है,
मै तकिया बन जाता हु,
बादल छूते है पहाड
या पहाड निगल जाता है आसमान
बुंदे बरसती है राहो में
मैं बहता लावा बन जाता हु
रोशनी पत्तोंपर कुछ लिहिती है
और मिठ्ठी जमिनपर
जिंदगी रंगीन स्याही है
मै खाली किताब बन जाता हु
हर रोज मै मिलता हु
मेरे जैसे किसी अंजान से
ओ मुस्कुराते हुए दुर जाता है
मै कल के सोच मे डुब जाता हु
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