दिवार
दरारे सीने पर लेकर खडी है दिवार
रात के संग दिंनभर खडी है दिवार
लोग रंगीन दिवार ढुंढते रहते है
रंग लगायेगा कोई सोचती है दिवार
हर पल नये नाम और नये चेहरे
वही पुराना चित्र बनाती है दिवार
पत्थर के लोग, पत्थर के सनम
शीशे की तरहा टुट रही है दिवार
ऐसेही गुजर रही है मेरी भी जिंदगी
जीने की वजहा तलाशती है दिवार
दिवारपे कुछ बोल लिखता है विवेक
लब्ज जोडकर गीत गाती है दिवार
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा