हमे लगा तुम हो

हमेशा की तरहा सुबह
ओस की बुंदो को मिलने आ गई
हमे लगा तुम हो
मोगरे का गजरा पहने
सुबह का स्पर्श लिये
हमे छुने आई हो
लेकिन ओ सुबह ही थी
पेड पौधों को हरा रंग लगाकर
चली गयी

हमेशा की तरहा दोपहर
सज धजकर चमक लेकर आ गयी
हमे लगा तुम हो
रोशनी की बिंदिया लगाये
उम्मिद की किरण लेकर
हमे जिंदा करने आई हो
लेकीन ओ दोपहर ही थी
सुरज मुखी के माथे को चुमकर
चली गयी

हमेशा की तरहा शाम
बगीचे मे फुलों के साथ खेलने आ गयी
हमे लगा तुम हो
कस्तुरी गंध के संग
बादलों की दुनिया छोडकर
हमे बाहो मे लेने आई हो
लेकीन ओ शाम ही थी
बादलों की उगली पकडकर
चली गयी

हमेशा की तरहा रात
जस्मीन की निंद तोडने आ गयी
हमे लगा तुम हो
चांद बनकर
चांदणी की चुनरी पहने
हमे अपना बनाने आई हो
लेकीन ओ रात ही थी
पर्वत, धरती, आसमान सबको सुलाकर
चली गयी

हमेशा ऐसा ही होता है
तुम ही दिखती हो हर जगहा
या फिर तुमही हो हर जगहा
हम सोचते रहते है
और वक्त चलता रहता है..

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