कातिल
ना कोई लब्ज है
ना है कोई जब्जा
पास है सिर्फ तजुर्बा
कत्ल होने का
आदत हुई है कातिल की भी
पर डर है की
कातिलों के जमघट में
मेरी प्यार की नज्म ना मर जाये
नफरत के खंजर से
मेरी गज़ल का गला ना कट जाये
तुम तो हो ही
मेरा जिस्म बेदिल ना बन जाये
खुदा ईश्वर भगवान मानने वाले ये दुश्मनो
मै भी काफिर हू
आना यहा भी कभी
कत्ल करना मेरा भी
पर इन्ह हर्फ को सुनने की
तमीज रखना
तमीज रखना
जिन्ह होठों से खून पिते हो
कभी उन्हसे किसीके
लब भी चुमना
कभी उन्हसे किसीके
लब भी चुमना
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा