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जुलै, २०१५ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

परींदे

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ये परींदे उड जा खुले आसमान मे बेजुबान होंगी खामोशीया कफनभी होगा महेंगा पर सीने मे सिर्फ तेरीही जान होगी... मै तो किंकर हु जालीम अंजुमन का शौकिन हु लज़्ज़त-ए-गिरिया का ताबिर के मेहबुब का दिवाना हु पर सच मे तो कोई मरासिम नही मेरा अकेलाही इम्कान करता हु किसी के होने का... अब तुजमेही है शम्मे की आखरी उम्मिदे रंजिश लेके बैठी है वो मुजसे मेहबुब तो बची है सिर्फ आखों मे खफा हो गयी थी ओ अब हो गयी गुमशुदा तलाश तो अभीभी करता हु लहु को तोड मरोड के फिरभी जिंदा हु मरता हु तभी जब आते है याद उसके कातिल खंदा-ए-लब... मै तो गम के अंधेरे मे डुबा बद्नशिब तु तो बेवफा खुले आसमान का सिकंदर प्यार की रोशनी तिलक लगती है मस्तिष्क पे और मेरा शिर कब का कट गया मैदान-ए-जंग मे अब जिंदा हो के भी मुर्दा बन गया हु... अभी तु मेरी भी उम्मिद बन गया है ..... किंकर – slave अंजुमन – society लज़्ज़त-ए-गिरिया - taste of tears ताबिर – meaning of dreams मरासिम – relationship इम्कान – possibilities रंजिश - enmity खफा – angry खंदा-ए-लब – smiling lips बेवफा – errant