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2017 पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

My English..

It was time a when few had a 'BLACKBERRY' And others had that 'Oxford dictionary' I started to learn English But My English was seriously scary... I used to write 'stationary' instead of 'stationery', Sometime 'wary' became 'worry' or 'weary', I still don’t know the difference between 'fairy' and 'ferry'... Seriously my English was scary, Word 'SCARY' has another 'story', In subject of infrastructure of economy I wrote- Scarcity is situation where resources are very 'scary'... When someone said 'bally' I used to check the 'belly', My friends always laugh at me as I was 'moody', But I always think How can I be a 'muddy'? But now I realized It doesn’t matter whether it is Hindi, English or Marathi It’s just an expression of love, joy, anger and sympathy If people understand the feelings, then it becomes poetry, And if people fai

तुम

आईने ने कांच संभाली है आखो मे तस्वीर बनाई है फिसलाऊ है तुम्हारी यादे दिल साहिलसा जज्बाती है बह रहा है लावा बातों का रुह की जिल्द कागजी है सागर भरा है आसूओं से ख्वाबों से भरी जिंदगी है मुस्कान सजती है फुलोंपर बगिचे मे अभी मायुसी है तुम खोयी हो भाप बनकर यहा धूपभी अभी सहमी है

एक राजा और उसका शहर

मुझे खामोशी के शहर ले आयी रात की परछाईया अपनी पहचान भूलकर यहा शांती से बहती है हवा कहते है किसी राजा ने यहा किसी कवी को दी थी सजा कारण कुछ खास न था लिखना यही था उसका गुन्हा तबसे खामोश चलती, सहती और सिर्फ सुनती थी प्रजा राजा ने एक दिन बादलों को बरसने से बिजली को चमक ने से फुलों को खिलने से मना कर दिया हर एक आवाज को शांत कर दिया राजा का भय इतना गहरा था कागजपर लिखे बोल मै जुबान पर ला न सका उस कागज को फाडकर मैंने भी शांती का मुखौटा बना दिया उस मुखौटे को पढकर किसी ने क्रांती का नारा दिया उस आवाज का धुआ दुर दुर तक फैला जब आग लग गयी तो राजमहल जलकर खाक हो गया तब मैंने जाना काफी नही है सिर्फ लिखना जरुरी है बयान करना इश्क, मोहब्बत प्यार या हो किसी के खिलाफ लढना अच्छा हुआ ले आयी रात की परछाईया मुझे लिखने का असली मतलब समझ आ गया

बोल ऐसे लिख दू

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शिप्रा के किनारे बोल ऐसे लिख दू निर बहता यही रुक जाये शिमला की हवाओं मे बोल ऐसे लिख दू निला आसमा गुलाबी हो जाये शिखर पर हिमालय के बोल ऐसे लिख दु निडर पहाड बिखर जाये शिशमहल के मुकूट पर बोल ऐसे लिख दु निरस्त्र दर्पण भी चमक जाये शिशिर के माथे पर बोल ऐसे लिख दु निरस फुल भी खिल जाये शितल छाव के संग बोल ऐसे लिख दु निस्तब्ध साया रोशन हो जाये शिवमुद्रा है रौद्र गंभीर बोल ऐसे लिख दू निलकंठ भगवान शांत हो जाये शिकायत उस तप्त धरती की बोल ऐसे लिख दू निराकार भूमि शिल्प बन जाये

मै समझ सकता हु

ओ स्वर, स्वर नही जो तुम्हारा है लेकीन मै सुन नही सकता ओ बात, बात नही जो तुम्हारी है लेकीन मै समझ नही सकता ओ अक्षर, अक्षर नही जो तुम्हारा है लेकीन मै पढ नही सकता ओ नज़्म, नज़्म नही जो तुम्हारी है लेकीन मै लिख नही सकता ओ वक्त,वक़्त नही जो तुम्हारा है लेकीन मै मेहसूस कर नही सकता ओ सास, सास नही जो तुम्हारी है लेकीन ये दिल पहचान नही सकता ओ चीज, चीज नही जो तुम्हारी है लेकीन मै सीनेपर रख नही सकता

भाई दूज

दिवाली मे आसमान भर आया मेरे आंगण मे नीर भर आया हर बेटी घर की रौनक होती है धुंधली है चमक, ये क्या दौर आया रंगीन दिवारे झगमगा रही है दीप्ती नही बस दीप घर आया धुआ धुआ है हर जगह हर वक्त चलते चलते ये कोनसा शहर आया मै आज अकेला खडा था दर पर इस वक्त खाली हाथ मीर आया इतनी दुर कहा गयी है रोशनी सवाल बार बार जिंदगीभर आया

तुम्हारी यादे

तुम्हारी यादे आसमान मे काले बादल लेकर आती है और तुम्हारी राह देखते देखते जो तारे फुल बनकर मुर्जा गये है उन्ह मे जान डालती है तुम्हारी यादे सीने मे सासोंसी बहती है और इस निरस जिस्म को बेबस दिल को, रुह का एहसास दिलाती है तुम्हारी यादे लब्जसी मतलबी है दोनो को बांधकर रखता हु चार दिवारो मे और ये दिवार ऐसी है की आपनेआप टुट जाती है तुम्हारी यादे आती है आईने पर तुम्हारी तस्विर रखकर चली जाती है और मेरी आखे बस मेरा चेहरा ढुंढती रहती है

बस तुमसे इश्क करते है...

आसमान छोटा करके देखो तारे टुटते नही दिल टुटते है... हवा नही चलती हमारी सासे बहती है अंधेरा नही है यहा यहा हम रहते है यहा चांद नही खिलता तुम्हारा चेहरा चमकता है सुबह हसीन नही है कोई शगुफ्ता है यहा सागर नही है किसी के आसु है ये फूल नही तुम्हारी मुस्कान है बारीश नही भिगोती हमे तुम छुती हो... कोयल के सप्तस्वर नही तुम गाती हो... यहा कौन जी रहा है? हम तो बस तुम्हे देखते है... हम मर नही जाते बस तुमसे इश्क करते है...

कुछ चेहरे

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ऐसे ही किसी राह पर मिल जाते है अनगिनत चेहरे कुछ चेहरे साथ चलते है कुछ दुरीया बनाते है हर एक चेहरा अधुरा है हर एक चेहरे मे कमीया है पर ये चेहरे का अधुरापन, ये चेहरे की कमीया कही छुप जाती है एक दुसरे के साये मे जैसे छुप जाते है दाग बादलों के पीछे पलभर का साथ होगा शायद या शायद साथही ना हो हो बस एक अंजान सफर इस अंजान सफर मे भी ये चेहरे बाते करते है खामोशिया भी बाटते है मेरे जैसे कुछ चेहरे यहा भी तन्हा दिखते है कुछ इसी तरहा रंगीन है हर एक चेहरा.. पन्ने पर रंगों को मिलाओ                                                                                            काला रंग बनता है यहा भी अनगिनत रंग है हर एक चेहरे पर लेकिन यहा मिल जाते है रंग तो इंद्रधनुष बनता है.... इंद्रधनुष को मिटना ही होता है हर एक राह को अलग होना ही होता है लेकीन राह भले बट जाये रंग भले अलग हो जाये चेहरे वही रहते है जो कल थे

आजाद राष्ट्र

आजाद हो गये कुछ राष्ट्र कुछ राष्ट्र लोकतांत्रिक हो गये कुछ लोकतांत्रिक हुकुमशाह बन गये और कुछ.. मुहाजिर बन गये..... मासुम थे लोग आजादी का जश्न मना रहे थे असल मे वे आजाद राष्ट्रों के कैदी थे आजाद राष्ट्रोंने मिलकर कुछ पहचाने मिटा दी जिंदा लाश को दो गज जमीन मिल ना पायी कल तक शांत हसमुख थी बौद्ध मुद्रा आज खौफजदा उदास बन गयी

आवाज शांत कर दी गयी।।

और एक आवाज शांत हो गयी गोलीयो कर के शोर मे और एक आवाज शांत हो गयी इस शांती मे जलती मोमबत्तीया डराने लगती है हर एक को है पहचान अपनी अपनी मोमबत्तियां अब उजाला बाटने लगी बाटते बटाते एक दिन अंधेरा हो जाएगा और हम इसी बेबसी के साथ करते रहेंगे सिर्फ इन्तेजार अगली सुबह का कल तुम्हारी मेरी या ऐसेही किसी दूसरे की आवाज शांत की जाएगी धीरे धीरे सब आवाजे शांत की जाएंगी और बचेगी सिर्फ जुबान बिना लब्जों की हम ऐसे 'शांतिप्रिय' समाज में परिवर्तित हो जायेंगे जहा दर्द बयां करना भी होगा एक गुन्हा ऐसे ही किसी शांतिप्रिय समाज के और एक कदम चलने के लिए आज और एक आवाज शांत हो गयी... आज और एक आवाज शांत कर दी गयी।।

दिवार

दरारे सीने पर लेकर खडी है दिवार रात के संग दिंनभर खडी है दिवार लोग रंगीन दिवार ढुंढते रहते है रंग लगायेगा कोई सोचती है दिवार हर पल नये नाम और नये चेहरे वही पुराना चित्र बनाती है दिवार पत्थर के लोग, पत्थर के सनम शीशे की तरहा टुट रही है दिवार ऐसेही गुजर रही है मेरी भी जिंदगी जीने की वजहा तलाशती है दिवार दिवारपे कुछ बोल लिखता है विवेक लब्ज जोडकर गीत गाती है दिवार

हमे लगा तुम हो

हमेशा की तरहा सुबह ओस की बुंदो को मिलने आ गई हमे लगा तुम हो मोगरे का गजरा पहने सुबह का स्पर्श लिये हमे छुने आई हो लेकिन ओ सुबह ही थी पेड पौधों को हरा रंग लगाकर चली गयी हमेशा की तरहा दोपहर सज धजकर चमक लेकर आ गयी हमे लगा तुम हो रोशनी की बिंदिया लगाये उम्मिद की किरण लेकर हमे जिंदा करने आई हो लेकीन ओ दोपहर ही थी सुरज मुखी के माथे को चुमकर चली गयी हमेशा की तरहा शाम बगीचे मे फुलों के साथ खेलने आ गयी हमे लगा तुम हो कस्तुरी गंध के संग बादलों की दुनिया छोडकर हमे बाहो मे लेने आई हो लेकीन ओ शाम ही थी बादलों की उगली पकडकर चली गयी हमेशा की तरहा रात जस्मीन की निंद तोडने आ गयी हमे लगा तुम हो चांद बनकर चांदणी की चुनरी पहने हमे अपना बनाने आई हो लेकीन ओ रात ही थी पर्वत, धरती, आसमान सबको सुलाकर चली गयी हमेशा ऐसा ही होता है तुम ही दिखती हो हर जगहा या फिर तुमही हो हर जगहा हम सोचते रहते है और वक्त चलता रहता है..

पापा

आज अचानक कुछ सुनाई दिया ‘बेटा सो जा इतनी रात जागना अच्छा नही होता’ मुझे लगा पापा होंगे पिठ थपथपाकर सर पर हात रखकर थोडी तारीफ करेंगे लेकीन यहा कोई न था बस कुछ अखबार थे और कुछ सफेद पन्ने.. असल मे ये अखबार पढना पापा ने ही सिखाया हातों की टुटी लकीरों से माथेपर लिखनाभी सिखाया यहा लोग भूल जाते है अपने चेहरे भी न जाने पापा के पास कोनसी दवा है मै फोन पर बाते बनाता हु दुनियाभर की पापा ‘असली बात’ समज जाते है लोग कहते है तुम आखों से दिल पढते हो तुम लिखते बहोत खुब हो तुम मे ये अच्छा तुम मे ओ अच्छा है इत्यादी इत्यादी मै मुस्कुराकर जवाब देता हु हर एक बच्चा पिता का आईना होता है पापा और क्या लिखु मै? कोनसी वर्णमाला का कोनसा अक्षर यहा रख दु मै? पापा ये वर्णमाला तो आप ही की देन है..

Where is INDEPENDENCE?

15 August 2017.. 71st Independence day of India.. We got independence back in 15 August 1947. But one community, one group of human beings got their recognition in 2014!! In 2014, Supreme Court recognized transgender as ‘Third Gender’!!! Imagine in INDEPENDENCE India, SOME HUMAN BEINGS were living with any LEGAL RECOGNITION. Superior Legal institute also said that without any kind of identity, it is impossible to live without DISCRIMINATION. Within one year, first transgender mayor is elected in Chhattisgarh. Supreme Court said that the fundamental rights of Transgender should be protected. But on 71st Independence day, do they have any FUNDAMENTAL RIGHTS? In 2014 Rights of Transgender Persons Bill was introduced in Rajya Sabha and passed in 2015. But Lok Sabha is still ignoring the rights of transgender community. Central ministry approved given but the core contain is missing and given bill is still pending in Loksabha. We have completed 70 years of Independence and we are still d

आनंद हो तुम

फलक तक फैला हुआ आनंद हो तुम जिंदगीसे दुर फिर भी जीवन हो तुम सदियों से रात ही है यहा अमावस की दुसरे आसमान मे छुपा कंचन हो तुम अभी तक इश्क का सुराग नही मिला उम्मिद की आखरी किरण हो तुम ये राह सुनी बेबस है ये सारा जहा मोहब्बत एक खुशबू, चंदन हो तुम दरारे है माथेपे जैसी हात की लकीरे खोया था चेहरा हमसे, मिलन हो तुम हमारा दिल था एक टुटा आशियाना पहाडसा ओजस्वी आंगण हो तुम रुठ गया था विवेक हमसे भी कभी उसे हमसे बांधनेवाला बंधन हो तुम

एक कत्ल एक हादसा

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जिनकी सासे खिलोनो मे अटकी थी अब दफ्तरो मे बंद हो गयी बहस इस हद तक गयी की किसके हिस्से मे कितनी मौते आयी अब गिनती चालू कर दी वक्त के साथ हम सब सिर्फ देखते रहते है कल कोई ओर था कातिल आज कोई ओर है मरनेवालों मे हम जैसे ही कुछ लोग है झूठे थे हम जो इन्साफ मांग रहे थे.. झूठे थे हम जो कातिल ढूंढ रहे थे.. ये तो हादसा था, झूठे थे हम जो इसे कत्ल समजते थे..

Hello I am Vivek Jadhav and sorry to say I am a victim of your perception.

Three years ago, I was confused over certain things. So I decided to change my look. I let my hair, beard to grow. One day, in Mumbai, I was travelling by Auto. At that time I had very bad conversion with autowala. When I was paying him given amount, he asked my name. After knowing my name, he said,” Are you Hindu?, I though you are a Muslim.” Another person who knows me since last 15 years told that I was looking like a Scheduled Caste boy. Few years ago, I was swimming in a river. My DUR KE RISHTEYDAR told me to get out from that river as there were two more boys swimming and they were black so my DUR KE RISHTEYDAR thought that they might belong to lower caste. THAT BLACK COLOR makes them to think that.. Two month ago, I met one person. He was very nice. After few days he sent me a friend request on facebook. Then I came to know that he was from Pakistan. I was shocked. The word PAKISTANI makes me to think DIFFERENTLY. So this means if someone is black then we should stay away f

हम इंसान बन गये..

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कुछ जमिन की पीठ पर जल गये कुछ जमिन के पेट मे दब गये कमजोर थे मकान जो टुट गये कमजोर थे जिस्म ओ   बेघर हो गये लहु लावा की तरहा बहता रह गया आसमान काला था कालाही रह गया मरी हुई मा का पल्लू पकडे बच्चा रो रहा था गली गली रंगीन झंडा लहरा रहा था दुऑ से भी बढता धुऑ गहरा था किसी की मौत किसी की अमन का जरिया था कुछ मरते रह गये कुछ मारते रह गये अमन की राह पर सब ऐसेही चलते रह गय्रे कुछही दिनो मे मुझे नयी पहचान मिल गयी मेरे दोस्त पिटर और मेरे बीच नयी दीवार बन गयी धीरे धीरे करिम अब्बू के कंदिल दिवाली मे झगमगाना भुल गये अब रामूचाचा के लड्डूभी रमजान मे स्वाद बिसर गये जानवर थे हम सब, अभी हम इंसान बन गये..

पहली बार

देखा जब तुम्हे पहली बार रास्ते के दाईन ओर जहा भीड थी वहा खडे थे तुम खिलते मोगरे के बाजु मे कुछ बाते कर रहे थे किसी के संग बाते सुनते सुनते हम वहा आये कहा तुम्हारा नाम क्या है? खिलता हुआ मोगरा नि:स्थब्ध हो गया रास्ते का दाईना ओर शांत हो गया इस शांती मे लब्ज शांती से तुम्हारे पास आये होग़े शायद तुम्हारे लब्जों की राह देखते देखते मोगरा फिर से खिलने लगा दाईं ओर रास्ता फिरसे चलने लगा मैने फिरसे पुछा नाम क्या है तुम्हारा तभी मुडकर देखा तुम्हने हमनेभी चुपचुपकर कुछ देखा देखते देखते तुम्हने कुछ कहा हम कुछ बोल दे इतने मे तुम्हने रुख बदला रास्ते के उस ओर आसमान खुला था यहा बादलों का साया था अब साया टुटने लगा बारिश की बुंदे बरसाने लगा बारिश मे शायद तुम कुछ ढुंढ रहे थे ढुंढते ढुंढते उस ओर चले गये उस ओर धीमा उजाला था इस ओर शाम का धीमा अंधेरा था यहा मोगरा भीग गया रास्ता सुमसान हो गया इस माहोल मे तुम दुर जाने लगे पानी की धार मे तुम्हारे कदमों के निशाण अपनी राह बनाकर चले गये.. हर सुबह रोशनी क्षितिज के उसपर आती है आखों के दरारों मे अपना आशियाना बनती है हम भी आते है हर

यहा इंसान इंसान बन जाता है.

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दो सासो के बीच का ये ठहराव यहा कही खो गया है.. धडकनों ने यहा लहरों का पहनावा पहन लिया है.. यहा ना कोई सरहद है, ना है इंसानी दिवार.. यहा है जिंदगी के अंग बेशुमार.. फिर भी कुछ अधुरा है, सागर से दुर जानेवाली भाप का अधुरापन, आसमान मे बुजनेवाले चिरागों का अधुरापन, कही ओर रहनेवाली जिंदगी का अधुरापन.. रात ऐसेही बढती रहती है सुबह के इंतेजार मे.. उस रात का अधुरापन.. इन्ह सब मे मै हैराण हो गया हु.. ठंडी हवा बह रही है या कोई छु रहा है? बादल शर्मा रहे है या ओढनी उड रही है किसी की? यहा सच मे अंधेरा है या मेरी ही ऑखे बंद है? मै सच मे हैराण हु.. यहा कौन अनंत है? थोडी दुरी पर आसमान का अंत है मेरे दिल मे भी एक दिगंत है वक़्त के साथ अफताब भी यहा रुक जाता है यहा जिंदा रहकर भी इंसान इंसान बन जाता है.

भेट तुकोबाची

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वैकुठवासी एक । भेटला मज वाट धरली आम्ही । पंढरीची त्याचे भलतेच साहस । म्हणे उजेड शोध मला रात्रीची साथ । तिमिरासाठी तो सांभाळे भार । स्वत:चाच स्वत: मी वाहतो भोग । चंद्रभागेत त्याचा त्यावर रोष । विटेचा सुटेना मोह मी असा शांत । माझा लोभ देहावरी त्याचा हा हट्टाहास । गोड व्हावा शेवट मी करतो आभास । सुख-दु:खांचा मी म्हणे तुकोबा। हाच का मोक्ष आता बुडवी गाथा । मोक्षासाठी तुका म्हणे विवेक । बस झाला खेळ मी करतो सुरवात । नव्या खेळाची

मै खाली किताब बन जाता हु

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जहा घर था मेरा वहा शाम आती है सुबह सुबह शाम होते ही चली जाती है मै घर की चौकट बन जाता हु कल तक खुरदरी थी जमिन, सुना है वहा नदी बहती है खत लिखने का जमाना गुजर गया मै अभी भी कलम ढुंढ रहा हु पता नही किस रास्ते पर हु पता नही हातों की लकिर है की राह कोई लकिरे नींदसी गहरी है, मै तकिया बन जाता हु, बादल छूते  है पहाड या पहाड निगल जाता है आसमान बुंदे बरसती है राहो में मैं बहता लावा बन जाता हु रोशनी पत्तोंपर कुछ लिहिती है और मिठ्ठी जमिनपर जिंदगी रंगीन स्याही है मै खाली किताब बन जाता हु हर रोज मै मिलता हु मेरे जैसे किसी अंजान से ओ मुस्कुराते हुए दुर जाता है मै कल के सोच मे डुब जाता हु

हम बेकार हो गये

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मौत से हम खफा थे, पर तुम्हारे प्यार मे हम उसीसे इश्क कर बैठे जल रहा था आसमान दिल का तुम्हारे नाम से, हम सिर्फ धुऑ देखते रह गये हमारे दर्द की बद्बू ऐसी थी की लोग दुर चले गये हम यही खुशबू सूंघते रह गये जब आग लगी थी इस शहर मे तुम ज्वाला बनकर आकाश मे मिल गये हम राख हो कर यही बस गये काम की थी जिंदगी, हम भी काम के थे तुम्हने दिल क्या तोडा जिंदगी आवारा, हम बेकार हो गये आनेवाले पल के साथ तुम चले गये अगली मंजिल पर हम गुजरते हुये वक़्त के साथ पिछेही रह गये आधी अधुरी कहाणी पढकर तुम्हने किताब बंद कर दी हम तो शायरी लिखतेही रह गये

तुम ही बताओ

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घाव गहरा है कोनसी दवा दू वार तुम्हारा था कोनसी सजा दू दिल का घर था मेरे दिल मे तुम्हने चुराया अब कोनसा पता दू आसमान खत्म हुआ है यहा तुमसे मिलने कितने पहाड मिटा दू आखे मुन्नवर इतनी सुबह रुक गयी यहा तो रात है मै कोनसा दिया दू शराबी आखे अब तडपा रही है बची हुई शराब मै कैसे लौटा दू विवेक ही गुनहगार है हम सब का तुम ही बताओ मै कोनसा फैसला दू

भुल गये

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रास्ते पर रुकना भुल गये यहा आकर रास्ता भुल गये पलके झुककर देखा तुम्हने हम मर जाना भुल गये दो पल साथ क्या चले तुम हम अकेले चलना भुल गये शिशीर मे बिखरते है सब यहा पत्ते झडना भुल गये बादलो ने सुरज को छुपाया सोहबत मे अंधेरा भुल गये आसमॉ मे जुगनू बिखरे है अभी ओ जलना भुल गये मुस्कुराकर चले गये तुम हम याद करना भुल गये विवेक इंसान था कुछ पल अब हम जीना भुल गये

कुछ इस तरहा आ जाओ यहा

लहराते हुये बाल गालों को जैसे चुमते है कुछ इस तरहा आ जाओ यहा मेहबुब मेहबुबा को बाहो मे जैसे लेता है कुछ इस तरहा आ जाओ यहा कोरा कागज ‘गुलाबी’ जैसे बनता है कुछ इस तरहा आ जाओ यहा बेमतलबी लब्जों से गझल जैसे बनती है कुछ इस तरहा आ जाओ यहा गिरता हुआ अफ्ताब लहरों को जैसे छुता है कुछ इस तरहा आ जाओ यहा दो सासे एक दुसरे से जैसे लिपटती है कुछ इस तरहा आ जाओ यहा सुर्यग्रहण जैसे होता है सुरज भी चांद से जैसे मिलता है कुछ इस तरहा आ जाओ यहा बादल टुटकर जमीन पर जैसे खिलते है कुछ इस तरहा आ जाओ यहा ये रुह कब्र मे जैसे सो जाती है कुछ इस तरहा आ जाओ यहा

यई ओ विठ्ठले

मध्यंतरी विदर्भातील काही गावांच्या अभ्यासाठी मी गेलेलो.. तेव्हा मी जी परिस्थीती बघितली तेव्हा काहीतरी सुचलेल त्यावेळी ज्या ओळी लिहुन ठेवल्या होत्या त्या आता इथे पोस्ट करीत आहे. (सुट्टीचा आणि परिक्षा नसल्याचा हा एक फायदा).. यई ओ विठ्ठले माझे माऊली ये नयनी जीव आणुनी वाट मी पाहे धरणीच्या ह्या भेगा शोधी तुझे रुप कोरड्या पोटी करतो विठ्ठलनामाचा जाप पिवळा पितांबर आता गगनी कोपला आसुडवारी करूनी जिव तुझ्या दारी आला खोटोबांचे राज्य आम्हा रस्त्यावर जाळी दलालांचे दास आता कोणी नाही वाली पाहूणी आक्रोश आमचा तू का गप्प झाला कृपादृष्टी शोधे आम्ही तुझीया पंढरीराया

सरहद

उसे देखकर हर चीज पिघलती है सरहद को शायद कोई चेहरा नही है अंधेरा गहरा है सरहदपर उसे देखना है तो रोशनी चाहिये मै दिया जलाने जाता हु वहा यहा जंग पुरी बस्ती जला देती है फुलोंसे भरा गुलदान भेजता हु उसे कॉटों की माला मिलती है सरहदपर अक्सर गोलीओं की आवाज सुनाई देती है अभी कही ये कहाणी शुरू की है लेकीन यहा आतिश-जनो की कमी नही है बहुत सारी कहाणीया मिटाई है ये भी मिट जायेगी कभी अभीभी है उन्ह कहाणीयों के निशाण इस कहाणी की भी यही कहाणी है क्यु है ये प्यार अंधा क्यु ये नफरत है गुंगी-बहरी ‘ओ’ कुछ देखता नही और.. ‘ओ’ कुछ सुनती नही है पता नही इस ‘जंग’ मे कौन जितेगा पूँछ की तरहा जब दिल नही होगा तब पता चलेगा

एक लडकी गुलाबी छत्रीवाली..

एक लडकी गुलाबी छत्रीवाली रग से सावली सुरत से भोली चले तो निखर जाये तिरगी से चांदणी आखे नशेली अदाओंसे भरी जैसे पिघलती हो शमा जहा जलती हो रोशनी भिगे बदन पर बुंदों के संग हवा ऐसे है थिरकती मानो उंगलीया छुती हो सारंगी और नाचती हो रागिनी बाते उसकी ऐसी नशेली बिनाघाव के बेहोश है करती धुप के साथ अब रास्तोंपर भीड बढ गयी भीड मे ओ कही खोई है वैसे ये बात है पुराणी भीड मे महोब्बत गुम होती है तो धुप मे चांदणी अब इंतजार है बारिश का क्या पता फिर से दिख जाये एक लडकी गुलाबी छत्रीवाली...

रंगमंच

हा ये रंगमंच ही है लेकीन कोई कटपुतली नही है यहा सब इंसान ही है किसी ना किसी का किरदार निभानेवाले किसी के लिबाजपर रंग है हजार तो किसी का पहनावा फिका हो गया किसी के हिस्से मे बोल है गुलाबी तो किसी के हिस्से मे है सिर्फ खामोशी फिर भी हर एक जी रहा है अपनी भूमिका ये किसी समाज का कोई मैदान-ए-कारजार या रणभूमी नही है जहा होता है भेदभाव ये रंगमंच है यहा मिलता है हर एक अदाकार को सन्मान अब समय आ गया आखरी घंटी बजने लगी है ये लाल पडदा गिर जायेगा लिबास उतर जायेंगे मुखौटे निकल जायेंगे एक कहाणी खत्म होगी और शुरू होगा नया सफर नये रंगमंच की ओर लेकीन, लेकीन कहाणी खत्म होती है मिटती नही मुखौटे निकाले जाते है निशान बुझते नही रंगमंच से जुडे धागे कभी टुटते नही क्योकी बाबु मोशाय, आनंद कभी मरते नही

तुम

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तुम्हारे साथ दिये जलते है तुम्हारे साथ दियेभी रोते है मुर्तीया कभी सास नही लेती हम अकसर तुम्हे पुजते है लाल बिंदिया लगाती हो तुम शरीर पर भी दाग होते है जिदगी मुनव्वर है आखो मे खुलने से पहलेही मिटाते है फुलों की तरहा खिलना था कली बनते ही तोड देते है पंछी की तरहा उडना था चार दिवारों मे बंद करते है तुम्हारी मुस्कान अनमोल है चेहरे बाजारों मे बिकते है नही बनना द्रोपती का कृष्ण हम तुम्हे गांधारी बनाते है हमे है आजादी अबद्धता तुम्हे संस्कार सिखाते है

तलाश

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तलाश अभीभी है तलाश अभीभी है उसकी जिसकी आंखो मे वसंत का तेज गुजारा करता हो, पलके मिट जाये तो लगे शिशिर आ गया खुल जाये तो लगे दिया जल गया जिसकी आवाज मे हो हूर की अदा जिसके माथे पे सुबह करती हो सजदा जिसकी चाल हो झरने सी चले तो ले चले रूह को रूके तो रोक ले नूर को जिसके जिस्म पर जलते है हजारो चिराग जहा मिल जाये पहेली रोशनी का सुराग तलाश है इक जिस्म की तलाश है इक रूह की तलाश है इक दिल की तलाश है उसकी जिसे ढुंढते ढुंढते ये दिन भी गुजर जायेगा...

मी जागा रहातो..

दिवसा कुठे तरी दडून बसलेली रात्र ह्यावेळी आकाशा येवढी मोठ्ठी होते एकटीच ‘ना सोयरे ना सुतक’ ह्या नियमाने तीनेही एकटेपण स्वीकारल असाव कदाचित ह्या इतक्या शांततेतही रातकिडे मात्र जिवंतपणाची आठवण करून देतात पण ते हसाताहेत की रडताहेत काहीच कळत नाही तरीही कळल्याचा आव आणून मीही कधी हसतो तर कधी रडतो अस म्हणतात रासायनिक प्रक्रियेने काजव्यांमध्ये प्रकाश तयार होतो रात्र फक्त एक निमित्त रासायनिक प्रक्रिया आमच्यातही होते पाणी पापण्यांपर्यंत नीरस असते ओघळताना खारे बनते दु:ख फक्त एक निमित्त पृथ्वी गोल आहे हे आता जाणवत रिकाम्या पहाटेबरोबर मग मलाही ‘शुन्यत्वाचा’ भास होतो तो भास नसल्याचा दिलासा पहाट करुन जाते मी मात्र रात्रीला काळोखाचा शाप आणि दिवसाला तेजाच वरदान ह्याशिवाय स्वार्गस्थ शक्तींना काहीच चमत्कार करता येत नाहीत अस मानून असाच जागा रहातो जशी रात्र रात्री जागी असते अगदी तसाच

चाहत

मोमबत्ती जल रही है पर उजाला खो गया अकेले में भी तन्हाईने भी तन्हा कर दिया जरासा टुट गया जरासा रुठ गया जोडने गये दिल जब हवाओं ने रुख बदला ना दवा है काम की ना दुवा है असरदार इश्क की बिमारी है और नफरत का है कारोबार बातो बातों मे एक बात निकली उसे समज मे आये तभी रात हो गयी रात मे बुज जाये ऐसी ये चिंगारी नही अंधेरे मे मिट जाये ऐसी ये आशिकी नही सुबह की प्रतिक्षा नही ओस की बुंदों की है चाहत रोशनी की नही अपनीही विरानगी की है