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एप्रिल, २०१७ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

एक लडकी गुलाबी छत्रीवाली..

एक लडकी गुलाबी छत्रीवाली रग से सावली सुरत से भोली चले तो निखर जाये तिरगी से चांदणी आखे नशेली अदाओंसे भरी जैसे पिघलती हो शमा जहा जलती हो रोशनी भिगे बदन पर बुंदों के संग हवा ऐसे है थिरकती मानो उंगलीया छुती हो सारंगी और नाचती हो रागिनी बाते उसकी ऐसी नशेली बिनाघाव के बेहोश है करती धुप के साथ अब रास्तोंपर भीड बढ गयी भीड मे ओ कही खोई है वैसे ये बात है पुराणी भीड मे महोब्बत गुम होती है तो धुप मे चांदणी अब इंतजार है बारिश का क्या पता फिर से दिख जाये एक लडकी गुलाबी छत्रीवाली...

रंगमंच

हा ये रंगमंच ही है लेकीन कोई कटपुतली नही है यहा सब इंसान ही है किसी ना किसी का किरदार निभानेवाले किसी के लिबाजपर रंग है हजार तो किसी का पहनावा फिका हो गया किसी के हिस्से मे बोल है गुलाबी तो किसी के हिस्से मे है सिर्फ खामोशी फिर भी हर एक जी रहा है अपनी भूमिका ये किसी समाज का कोई मैदान-ए-कारजार या रणभूमी नही है जहा होता है भेदभाव ये रंगमंच है यहा मिलता है हर एक अदाकार को सन्मान अब समय आ गया आखरी घंटी बजने लगी है ये लाल पडदा गिर जायेगा लिबास उतर जायेंगे मुखौटे निकल जायेंगे एक कहाणी खत्म होगी और शुरू होगा नया सफर नये रंगमंच की ओर लेकीन, लेकीन कहाणी खत्म होती है मिटती नही मुखौटे निकाले जाते है निशान बुझते नही रंगमंच से जुडे धागे कभी टुटते नही क्योकी बाबु मोशाय, आनंद कभी मरते नही