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2018 पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

मरुस्थल के वंशी है

मरुस्थल के वंशी है हम खेतों में बसते है... धृतराष्ट्र का अंश है जिन में सरकारे बनाते है गांधारी की पट्टी लिए विपक्षी दूसरी ओर खड़े है द्रौपदी बने हम सदियों नंगे है हम खेतों में बसते हैं मरुस्थल के वंशी है हम खेतों में बसते है... काँटों से दोस्ती है हमारी बारिश हमारी माता है धूप की गोद मे खेलते है हम खेतों में बसते हैं मरुस्थल के वंशी है हम खेतों में बसते है... विज्ञान की प्रगती देखो चाँद पर पानी ढूंढा हमारे नसीब में बस रेत मिट्टी और पत्थर मिला हम सदियों से प्यासे है चलो चाँद पर खेती करते है हम खेतों में बसते हैं मरुस्थल के वंशी है हम खेतों में बसते है...

Day one...

जहाँ डूबता है सूरज वहीं से निकलता है कभी? दिल जो तोड़ते है उनसे दिल जुड़ता है कभी? निकलता होगा चाँद रात में रात में चोर निकलता है चोरी किया हुआ दिल कोई लौटाता है कभी? मैं मुझ में ही कैद हूँ लेकिन क्या करूँ खुद से ही कोई बगावत करता है कभी?

हमारी समझदारी

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हमारी गुस्ताख़ी थी उस नजर को इक़रार समझ बैठे हमारी समझदारी थी उन्हें समझदार समझ बैठे हमारी आशिक़ी थी ओ हमें बेकार समझ बैठे हमारी खामोशी थी ओ इश्क़ को झूठ समझ बैठे हमारी जिंदगी थी ओ मज़ाक समझ बैठे इस मज़ाक को हम जिंदगी समझ बैठे उनकी समझदारी समझदारी थी हमारी समझदारी को हम समझदारी समझ बैठे

मैं 'बंद' कमरे में 'आज़ाद' हूँ.. Girl Without A Face

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हर मंगलवार मोहल्ले में ख्वाबों का मेला सजाता है... हर मंगलवार कोई बाहर से दरवाजा बंद करता है... मैं आईने के सामने बालों से खेलती रहती हूँ... मैं बंद कमरे में आज़ाद हूँ खिड़की के बाहर आसमान छूते गुब्बारे देख मैं भी छलांग लगाती हूँ... मेरा आसमान छत है मैं दीवारों से टकराती हूँ... फूट जाते है गुब्बारे मैं फिर से खड़ी हो जाती हूँ... मैं बंद कमरे में आजाद हूँ दीवारों के उस पार मुझे जाना है, मैं बार बार टकराती हूँ... उस में दरार आती है, मैं भी घायल होती हूँ... ‘वे’ दीवारों की मरम्मत करते है, मैं मेरी चोट सहलाती हूँ... मैं बंद कमरे में आज़ाद हूँ मैं 'बंद' कमरे में 'आज़ाद' हूँ, मैं कमरे में 'बंद', 'आज़ाद' हूँ.. इकहत्तर साल हो गए, मैं यही हूँ... बाहर से दरवाजा बंद है, और मैं अंदर से घायल हूँ... मैं युही टकराती रहूँगी, कोई दरवाजा खोले या ना खोले, ये दीवार जरूर गिराऊंगी... मैं 'बंद' कमरे में 'आज़ाद' हूँ, मैं कमरे में 'बंद', 'आज़ाद' हूँ..

ये दिल्ली काश तू इंसान होती..

ये दिल्ली काश तू इंसान होती तुझमे भी बाईं तरफ दिल होता मुम्बई, हैदराबाद, बैंगलोर से या फिर श्रीनगर, इस्लामाबाद या लाहोर से तुझे भी प्यार हो जाता ये दिल्ली काश तू इंसान होती तुझमे भी बाईं तरफ दिल होता ये दिल्ली काश तू इंसान होती किसी बच्चे की तू मा होती फिर ‘इंच इंच’ के लिये तू युह ना लढती खुद का बच्चा भुका रखकर तू तू दुसरों के बच्चे युह ना मार देती ये दिल्ली काश तू इंसान होती तुझमे भी बाईं तरफ दिल होता ये दिल्ली काश तू इंसान होती दुनिया देखने के लिये दो आखे होती जिन्हो ने आपने खोए है किसी दंगे मे उन्हके आसू देख पाती सिर्फ मुआविज़ा देकर पराया ना करती ये दिल्ली काश तू इंसान होती तुझमे भी बाईं तरफ दिल होता ये दिल्ली काश तू इंसान होती हर चुनाव मे हात की किसी उंगली पर काली स्याही लगवाने का दर्द समझ पाती तू मेरी भी तकलीफ समझ पाती ये दिल्ली काश तू इंसान होती तुझमे भी बाईं तरफ दिल होता Incomplete...

India-भारत

कुछ मकान आसमान को छू लेते है कुछ लोग आसमान को ही छत बनाते है खुलती है Starbuks, CCD की दुकाने कदम कदम पर अस्पताल से दूर हर दिन कुछ लोग मर जाते है कुछ लोग hair oil मे protein ढुंढते है यहा कुछ बच्चे protein के बिना ही जी लेते है Front page पर छपती है खबरे Indian Premier League की अफबारवाले भारतीय किसान मोर्चे की black and white तस्वीरे आखरी पन्ने पर चिपकाते है India की अमीरी मे लोग खाने का शौक रखते है भारत की गरीबी मे लोग भूखे सो जाते है

आजतक

आजतक कभी आसमान मे टुटता तारा नही देखा मैंने उसकी आखो मे काजल फैलते हुए देखा... मैंने उसकी आखे देखकर मन्नते मांगी है आजतक कभी मैंने पुनम का चांद नही देखा मैंने उसके माथेपर बिंदी को चमते हुए देखा मैंने उसकी बिंदी देखकर गझल लिखी है आजतक कभी लावा बहते हुए नही देखा मैंने उसके गालोंपर गुलाब खिलते हुए देखा उस गुलाबी रंग ने मेरी ज़िंदगी सजाई है आजतक कभी हवॉ मे सासों को तैरते हुए नही देखा मैंने उसकी आवाज को मुझे छुकर जाते हुए देखा मैंने उसकी आवाज सुनते सुनते ज़िंदगी गुजारी है

कुछ चीखे

आज कल कुछ चीखे मुझे सोने नही देती सपनों मे आकर उन्हका हक्क मांगती कुछ चीखे मुझे सोने नही देती मै उठ जाता हु घर से बाहर निकलता हु बाहर भीड की आवाजे मुझे जीने नही देती आज कल कुछ चीखे मुझे सोने नही देती बहन की बेटी के लिये मैंने खिलोना खरीदा था आज उसकी खामोशी मुझे बोलने नही देती आज कल कुछ चीखे मुझे सोने नही देती मुझे पता नही क्या होगा लेकीन इतना बता दू जो कुछ शेष बचेगा मुझे ढंग से मरने नही देगा... जो कुछ शेष बचेगा मुझे ढंग से मरने नही देगा...

Unknown...

दुर रहकर भी ऑखो मे बस जाता है उसका चेहरा आसमान बन जाता है ओ बाते बिना सोचे समझे करती है उसे क्या पता ‘ये’ सासे ‘उन्ह’ बातोंपर चलती है ओ ढूंढ रही है मृगतृष्णा रेगिस्तान मे और यहा मेरी आखे दरीया बन जाती है दिया जलाने का बहुत शौक था मगर उसका साथ हो तो यहा रात दिखती नही है अब ओ नही है यहा मिट्टी बार बार बता रही है फिर भी न जाने क्यु हवा खाक छान रही है

.... तो जान जाएगी

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ये शाम तुझे भी इजाजत मिल जाएगी किसी शाम तुझे भी मोहब्बत मिल जाएगी एक सास मे इतना नजदीक आया हु की दुर जाते जाते पुरी जिंदगी गुजर जाएगी नये शहर गये हो तुम चांद चमक गया होगा अब पुरानी बस्ती अंधेरे मे बिखर जाएगी पलकों का ये खेल नब्जों से मिलता है नजर झुक जायेगी तो धडकन रुक जाएगी मिट्टी ने कहा था मुझसे इश्क जालिम होता है मुझे क्या पता हकीकत अश्को मे भिग जाएगी सो रहा था मै जब खुदा आया था दर पर मेहफिल से तुम चले जाओगे तो जान जाएगी

It's not good bye.. It's see you later..

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तुम सब एक अनमोल कहानी साथ लेकर जा रहे हो जिसमे है आमोद, आनंद उत्कर्ष और पुल्किता जिसमे है शाम सी अरुनिमा जो साथ रहेगी उम्रभर जैसे साथ रहता है आयुष तुम सब एक अनमोल कहानी साथ लेकर जा रहे हो एक कहानी अफ्ताब सी ओजस्वी नम्रता सी नम्र मृणालसी शांत भवानी, रेवा, भाव्या और आर्या सी रौद्र हिमाद्री सी शीतल सुशांत सी विचारशील अर्चाना सी एकाग्र सोने से भी उज्वल रेश्मा शी रेशमी तुम सब एक ऐसी कहानी साथ लेकर जा रहे हो एक ऐसी कहानी जिसमे मीरा का प्यार हो हरी का विश्वरूप हो ऋत्विक सा ध्यान हो सिम्रन का चिंतन हो लक्ष्मी का प्रतिक हो श्रीपर्ना की उज्वलता हो श्रेया का दिप हो अंजली सा आदर हो दिव्या की दिव्यता हो... जो जस्मिन की खुशबू से पारुल की खुबसुरती से सुरभी की महक से मीनाक्षी की सुंदरता से तन्वी की मासुमियत से सोफिया की नजाकत से एकरूप हो गयी हो एक ऐसी कहानी तुम सब लेकर जा रहे हो इस कहानी की कोई एक भाषा नही है इसमे समाये है हजारो लब्ज तपाब्रता, देबारती से लेकर प्रिस्कीला, श्रीकुट्टी तक हर लब्ज इस मे बसा है... हजारो भाव है फिर भी एक साथ रहने की मान

Happy International Women's Day

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कल अखबार के आखरी पन्ने पर एक खबर थी स-बारा साल की शरणार्थी मॉ की तस्विर थी खबर मुश्किल से एक दो इंच बडी थी बाजु मे एक विज्ञापन भी था आधे पन्ने से भी बडा जिसमे महिलाओं के आत्मसन्मान के बारे मे लाल-पिले-निले रंगो मे बहुत कुछ लिखा था.. ओ अखबार पढकर मैंने रद्दी मे डाल दिया.. पापा ने कहा - ‘कल से English Paper शुरु करते है रद्दी को अच्छा भाव मिलेगा’ आज English Paper मे front page पर एक News है – ‘Hollywood के किसी बडे producer ने किया सो-दो सो नायिकाओं का यौन शोषण’ मैंने सोचा दुनियाभर मे यही हाल है यहा रद्दी की इज्जत भी इन्हकी इज्जत से बडी है.. अब कल के अखबार मे अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर बडे बडे लेख लिखे जायेंगे चिंतन होगा, तारीफ होगी लम्बे लम्बे भाषण किये जायेंगे लेकीन उस बारा साल की मा इन्ह सब से दुर अपने बच्चे को दुध पिलाती होगी यहा से कई दुर एक पिडीत लडकी आत्म सन्मान के लिये लढती होगी... और हम United Nation से लेकर पंचायत तक इन्हकी इज्जत और आत्म सन्मान को सलाम दे कर इन्हकी इज्जत और आत्म सन्मान दफ्तरों मे बंद कर देंगे इस दिन भी छुट्टी मिल

मै बस निकल ही रहा हु

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मै बस निकल ही रहा हु.. तुम्हारे बाल, जो हवा बनकर मुजसे गुफ्तगू करते थे उन्हसे कुछ बाते करनी बाकी है.. तुम्हारी बिंदीया जो चांद बनकर मुझे गुमराह करती थी और थोडा गुमराह होना बाकी है इतना मुझे करने दो मै बस निकल ही रहा हु.. एक कविता जो अधुरी थी पुरी करनी बाकी है सोचा था उसे बारीश के बुंदो से, आंधी की बेचैनी से मै सजादुंगा... लेकीन लेकीन.. यहा ना आंधी आयी ना बारिश.. बस उन्ह की राह देख रहा उन्हके आने के बाद, कविता पुरी करने दो मै बस निकल ही रहा हु... कुछ सासों का हिसाब बाकी है.. तुम्हारी बातोंसे, तुम्हारे एहसास से तुम्हारी धडकनों से जो कुछ लिया है ओ वापस करना बाकी है हिसाब करके जितनी देनी होगी उतनी सासे तुम्हारे दिलपर रखने दो मै बस निकल ही रहा हु.. कुछ कहाणीया जो सच्चाई के पीछे छुपकर मुझे बहका रही थी फुलों को महका रही थी उन्हसे सच्चाई जानना बाकी है सच्चाई जानना बाकी है ये उलझन समझने दो मै बस निकल ही रहा हु दुर जाने से पहले थोडा रुक जाओ तुम्हारे जाने से पहले मै खुद ही निकल रहा हु मै बस निकल ही रहा हु

मधुबाला और श्रीदेवी

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तू ना जा मेरे बादशाह एक वादे के लिए एक वादा तोड़ के... मधुबाला भी फरवरी मे ही चली गयी थी। अब श्रीदेवी... मुझे अभीभी ये एक अफवा ही लग रही है.. पर वक्त आगे हम सब मजबूर है... सदमा मुव्ही से सफर चालू हुआ मेरा as a sridevi’s fan.. फिर चांदणी, मिस्टर इंडिया, खुदा गवाह, चालबाज, नागीण.. करीब करीब सब मुव्ही मैंने देख ली.. बचपन मे नागीण देखने के बाद मुझे सच मे लगा था की श्रीदेवी एक इच्छाधारी नागीण है.. श्रीदेवी को जब भी हवा हवाई गानेपर नाचते हुये देखता हु तो मुझे भी नाचने का confidence आता है। उसके बाद English-Vinglish की शशी ने दिल पर राज किया। मुव्ही शायद 2012 मे आयी थी। मै 2014 मे मुंबई आया था डिग्री के लिये। मुझे English-Vinglish की शशी ने सीखाया कैसे जीते है। उसे भी English आती नही थी और मुझे भी नही आती थी। मै आज भी English-Vinglish देखता हु.. शशी मुझे विश्वास देती है। श्रीदेवी Thank you so much.. ये सफर कभी खत्म नही होगा.. जब तक घडी के कॉटे चलते रहेंगे, जब तक वक्त दौडता रहेगा, श्रीदेवी नाम का ख्वाब युही ज़िंदा रहेगा... एक ज़िंदा ख्वाब.... 'नागीन 'सी चाल थी आज 'सद

ये चांद यहा भी निकला कर

ये देश है अंधे लोगों का ये चांद यहा भी निकला कर यहा मंगल तक सवारी है सदियो पुरानी भूकमरी है यहा बस्तीभर अंधेरा है और चंद मकानो मे रोशनी है ये देश है अंधे लोगों का ये चांद यहा भी निकला कर NEFT का जमाना है कही छुट्टे का झगडा है कुछ जीते है 4G मे कही जीना एक बहाना है ये देश है अंधे लोगों का ये चांद यहा भी निकला कर रात यहा गहरी है उससे गहरी खामोशी है लोग अंधे है यहा, मगर ख्वाबभरी जिंदगी है ये देश है अंधे लोगों का ये चांद यहा भी निकला कर तुझे देख नही पाते है पर महसूस करते है माना की मायुस है मगर अभीभी नही हारे है ये देश है अंधे लोगों का ये चांद यहा भी निकला कर टुट जा लेकीन ऐसे मत फसाया कर जुगनू की तरहा ना सही युही जी ले आईना दिखला कर कोई साथी नही है रात मे अब तु तो मत अकेला कर ये देश है अंधे लोगों का ये चांद यहा भी निकला कर

दूसरा दिन... मंजूर नही

पल मे भिगोना पल मे भाप होना ये ‘बारिश’, ये समझदारी मंजूर नही हकीकत की तरहा आना कहाणी बनकर रह जाना ये ‘इश्क’, ये ईमानदारी मंजूर नही मेरे संग ज़िंदगी बिताना दुसरों के लिये टुटना ये ‘दिल’, ये बेवफाई मंजूर नही हूर बनकर आ जाना और तन्हा कर देना ये ‘खुदा’, ये खुद्दारी मंजूर नही सागर मे दुर कही दिख जाना मिलन के वक्त दुर चले जाना ये ‘आसमॉ’, ये यारी मंजूर नही मोहब्ब्त मे तेज दौडना विरानगी मे रुक जाना ये ‘वक्त’, ये गद्दरी मंजूर नही मेरे लिये धडकना अजनबी के लिये थम जाना ये ‘सॉस’, ये साजेदारी मंजूर नही इतने सारे रूप लेना फिर भी खुदमुख्तार रहना तुम्हारी ये अदाकारी मंजूर नही

पहला दिन

तुम्हारे संग हसना इब्तिदा थी तुम्हारे बिन मुस्कुराना इंतेहा है तुम्हारे संग खामोशी गीत थी तुम्हारे बिन खामोशी अमीत है तुम्हारे संग मधुर नज्म थी तुम्हारे बिन नज्म अयुग्म है तुम्हारे संग शाम शुरूआत थी तुम्हारे बिन शाम एक अंत है तुम्हारे संग चांदणी बिंदिया थी तुम्हारे बिन चांदणी बुझता दिया है तुम्हारे संग जिंदगी, तुम और तुम्हारी बाते थी तुम्हारे बिन जिंदगी, सिर्फ तुम और तुम्हारी बाते है

पापा

पापा, तुम ही बताओ तुम्हे लब्जों बयान कैसे करू? ओ नजर जो चेहरा पढती है, ओ आवाज जो सहारा देती है, ओ आसू जो दिखते नही है, ओ डाट जो जल्दी पिघलती है, ओ दर्द जो हसी के पीचे छुपा है, ओ एहसास जो एक साया है, इन्ह सब को तुम ही बताओ पापा कागज पर कैसे उतारू? पापा, तुम ही बताओ तुम्हे लब्जों बयान कैसे करू? पापा, कागज पर लिखी जाती है कहाणीया, उतारी जाती है कल्पना, तुम तो हकीकत हो, सुरज से तेज, सागर से गहरी और आसमान से विस्तृत.. जो हकीकत मुझे जिंदा रखती है, पापा तुम ही बताओ उसे मै कैसे बताऊ पापा, तुम ही बताओ तुम्हे लब्जों बयान कैसे करू

यूँ ही

हर दिन तुम यूँ ही आती रहो रोशनी के बिना सुबह अच्छी नही दिखती तुम बिंदिया यूँ ही लगती रहो चांद के बिना रात अच्छी नही दिखती तुम बाते यूँ ही करती रहो धडकनों के बिना नब्ज अच्छी नही दिखती तुम ख्वाबो मे यूँ ही आती रहो दिल के बिना आह अच्छी नही दिखती तुम दुर ही सही यूँ ही एहसास देती रहो रुह के बिना जिंदगी अच्छी नही दिखती

गणतंत्र दिवस..

गणतंत्र, लोकतंत्र ये शब्द सिर्फ शब्द है इन्ह का अस्तित्व एक ख्वाब है इस ख्वाब मे कौन कौन है सहमे हुये चेहरे यहा ज़िंदा कोई नही है झंडा बेचनेवाले बच्चे गणतंत्र सिक्को मे ढूंढ रहे है तिरंगे के रंग इन्हके रंगो मे अब कहा मिलते है? चौराहे पर भिक मांगती मॉ को क्या बताऊ गणतंत्र क्या है? अब भारत को मॉ बुलाने के लिये यहा बच्चे कहा है? यहा झग़डे है राष्ट्र के लिये धर्म के लिये लडते है किसी की मौत को हम अमन कहते है ध्वजस्तंभ की उंची तेजीसे बढ रही है यहा गरीबी उतनीही तेज दौड रही है फिर भी हे गणतंत्र तुझे सलाम करता हु तेरे लिये जिन्होने खून बहाया है उन्ह की कदर मै भी करता हु तेरे जन्मदिन की मै भी बधाइयॉ देता हु कोई भूखा ना सोये आज के दिन यही दुआ करता हु

तुम

पलकों पर पानी लिये रात निंद बनकर आती है माथे पर चांद लिये यादे ख्वाब बनकर आती है तुम्हारी खुशबू लिये हवा सास बनकर आती है तुम्हारी तस्वीर लिये धडकने नज्म बनकर आती है तुम्हारे संग बिता वक्त लिये शाम बादल बनकर आती है तुम्हारी आवाज लिये बाते बरसात बनकर आती है तुम्हारे संग रोशनी ओस की बुंदे बनकर आती है तुम्हारे संग सुबह हर दिन जिंदगी बनकर आती है तुम्हारे संग नज्म नब्ज बनकर रह जाती है जिंदगी के बिना जिंदगी जिंदगी बन जाती है

ये आसमा

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दो बुंद यहा भी बरसा दे ये आसमा दो बुंद यहा भी बरसा दे यहा जमीन बंजर है सीने पर गहरी दरारे है दो बुंद यहा भी बरसा दे यहा भी लोग भूके है यहा भी लोग प्यासे है ये आसमा दो बुंद यहा भी बरसा दे अब सुक गये है ओंठ खाली है नब्ज ये आसमा दो बुंद यहा भी बरसा दे गालों पर लाली नही मांग रहा थोडी चमडी तो दे दे ये आसमा दो बुंद यहा भी बरसा दे मेरी मांग मेरी बुजदिली नही तेरी बेईमानी है थोडी ईमानदारी दिखा दे ये आसमा दो बुंद यहा भी बरसा दे

तुम

तन्हाई मे लिखा मजमून महफिल मे गीत बन जाता है आईने मे देखा दर्द तुम्हारे आखो मे मोहब्बत बन जाता है फुलों का शबाब विरानगी मे शराब बन जाता है रात का चांद दिन मे अक्स बन जाता है आकाश छूट जाता है तब बादल आसू बन जाते है जिंदगी के टुकडे तुमसे दुर जाते है तब ख्वाब बन जाते है ख्वाबो मे रहकर तुम जिंदगी बन जाते हो.. जिंदगी मे रहकर तुम एक ख्वाब बन जाते हो..