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Atheist having spiritual experience

It was around 11 AM. We reached Delhi. It was my first trip with her. It was kind of unplanned. But then we highlighted the places including historical places, temples. We also extended our trip and decided to visit Red Fort, Taj Mahal, Mathura, Vrindavan.  Being a religionless, non-believer, atheist, I am not much interested to visit temples for worship. But yes I do visit temples just to understand the old architect. Since Mathura and Vrindavan do have a mythological background, I just wanted to know how these towns were evolved due to religion-based tourists. The same goes for the Taj Mahal. For me, the Taj Mahal and Red Fort are beautiful historical places that were constructed by highly skilled amazing but exploited laborers. These historical sites are the places where generations of laborers had faced exploitation. Therefore I used to think that I will never feel good at these sites.  But that didn't happen. We started exploring the Taj Mahal. Holding her hand, I was feeling

2021-Infinity

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Not exactly a 'thank you' post but it's something that I really wanted to say..  One year ago, I was not stable mentally partially because of health issue but more than that I was not happy with me, not satisfied with anything. Despite having great academic success and good progress, I wasn't happy with anything. In fact, I was becoming a machine that has two roles: do work regularly and stop when fuel exhausts. For the last four-five years, I started isolating myself. People used to talk, used to make me happy but I preferred to be an isolated person, I preferred to talk less. Everyone has problems. I started looking at these problems only. Friends professors everyone was telling me that you have a good future and you are destroying it. I was involved deeply (I am still involved) in my ideas, principles, ideologies. And I was unable to look beyond that. And then covid happened, lockdown imposed. And I was like what will happen now? But.. something happened. Yes, someth

आधी गजल

निंद को लिपटकर सोता हूँ मै जैसे तुम्हे बाहो मे लेता हूँ मै बिखर गया है यादों का ढांचा जोडकर उन्हे कंकाल बनाता हूँ मै तुम्हारे घुस्से की लत लग गयी तुम्हारी आवाज मे डाटता हूँ मै तुम सिर्फ तुम , और कुछ नही कुछ ऐसा ही नशा करता हूँ मै मंदिरों मे बंद खामोश है ‘ विवेक ’ और तुम्हे मेहसूस करता हूँ मै continued

अनाज की चोरी

मेरा पिछवाडा दिवार के कोने इतना सार्वजनिक हो गया है कोई भी आकर थुकता है मुतता है.. मेरे से अब शराफत की उम्मिद मत रखना और शरीफ बनना ही क्यों है? अगर कल का खूनी आज थानेदार बन सकता है कल का गधा आज सरदार बन सकता है तो याद रखना शराफत का कोई भविष्य नही है... और ऐसे भी जो शराफत खुद के पेट की भूख मिटा नही सकती ऐसे शराफत से दूर चोर बनना ही ठीक है और तुम भी कमाल करते हो... मेरे जैसे चोर की पिटाई करते हो और हरे भरे सावकारों को सर पे बिठाते हो.. ऐसा करने के बाद भी अगर तुम शरीफ हो तो ऐसे शराफत से दूर चोर बनना ही ठीक है

भय है मेरा

सुबह अखबार से रात मे न्युज़ चॅनलों से राष्ट्रवाद पढ रहा हूँ ये भय है मेरा तुम्हारे राष्ट्रवाद से डरता हूँ रास्ते मे गाय दिख जाये तो प्रणाम करता हूँ हर एक झंडे को मै सलाम करता हूँ राष्ट्रगान की धुन सुनाई दे मै वही खडा रहता हूँ ये भय है मेरा तुम्हारे राष्ट्रवाद से डरता हूँ भूखमरी को मै झूठा साबित करता हूँ रामलीला पर बैठे बुढों को मै राष्ट्रद्रोही कहता हूँ नुक्कडपर बेकार युवाओं को विकास दर समझाता हूँ ये भय है मेरा तुम्हारे राष्ट्रवाद से डरता हूँ 26 जनवरी, 15 अगस्त को दिलोजान से भारत माता की जय चिल्लता हू जो चिल्लता नही उसे मा बहन की गाली देता हूँ ये भय है मेरा तुम्हारे राष्ट्रवाद से डरता हूँ मै डरपोक हूँ सीमापर शहिद नही हो सकता लेकीन ऐसे ही कही पुल टुट जाये या कही इमारत गिर जाये मै मरने के लिये तयार हूँ ये भय है मेरा तुम्हारे राष्ट्रवाद से डरता हूँ

मरुस्थल के वंशी है

मरुस्थल के वंशी है हम खेतों में बसते है... धृतराष्ट्र का अंश है जिन में सरकारे बनाते है गांधारी की पट्टी लिए विपक्षी दूसरी ओर खड़े है द्रौपदी बने हम सदियों नंगे है हम खेतों में बसते हैं मरुस्थल के वंशी है हम खेतों में बसते है... काँटों से दोस्ती है हमारी बारिश हमारी माता है धूप की गोद मे खेलते है हम खेतों में बसते हैं मरुस्थल के वंशी है हम खेतों में बसते है... विज्ञान की प्रगती देखो चाँद पर पानी ढूंढा हमारे नसीब में बस रेत मिट्टी और पत्थर मिला हम सदियों से प्यासे है चलो चाँद पर खेती करते है हम खेतों में बसते हैं मरुस्थल के वंशी है हम खेतों में बसते है...

Day one...

जहाँ डूबता है सूरज वहीं से निकलता है कभी? दिल जो तोड़ते है उनसे दिल जुड़ता है कभी? निकलता होगा चाँद रात में रात में चोर निकलता है चोरी किया हुआ दिल कोई लौटाता है कभी? मैं मुझ में ही कैद हूँ लेकिन क्या करूँ खुद से ही कोई बगावत करता है कभी?