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मे, २०१६ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

मेरी हिर

रात की एक ख्वाईश है मेरी आंखे बंद करनी है मेरी पलकों पर लिखना है कुछ तुम सब का सुरज डुब गया जिंदा था आतप मेरा भी तेरी नजरों में तूने इंकार किया और मै तारिकी के जंगल मे खो गया अंधेरे को अब कोई सुरत दे दो इस जंगल को कोई रोशनी दे दो लेकिन अब वक़्त चला गया तुझे दूर करके रात का मक्सद पुरा हो गया अब मेरी भी आंखे मिट गयी पर यहा ना दफनाओ मुझे मेरी हिर का ये शहर नही तेरा शहर ढुंढ रहे है लोग अभी...

कहाणी

ना ये साजिश है ना ये है इत्तेफाक ये तो बस एक कहाणी है किसीने तो बनायी हुयी इस में राम भी है, सीता भी लैला भी और मजनू भी मिर्झा भी है और साहिबां भी अब पुर्णिमा का चांद अमावस की तरफ जा रहा है इस कहाणी का अंत आया है कहाणी? दास्तान है ये अभी हिर का रांझा ये कौनसा अमृत गया? हिर के बाहों में अब खामोश हो गया कलम की स्याही सुक क्यु नही गयी अंत में अंधरा ही क्यु है यहा दिन के बाद कौन है यहा मुन्सिफ? काली मसि का ये धब्बा जायेगा कब? अब लोग प्यार करना ही भुल गये.. लोग समझदार बन गये.. लोग आज कल काला कुर्ता पहनते है..

तुम

तुम मोहब्बत बन जाना मिर्झा-साहिबां की मै खाली दिल बन जाऊंगा फिर बसना इस मुरजे दिल मे बंजर जमीन को नई पेहचान देना तुम अंकुर बन जाना पुराने किले पर मै बेहता किरन बन जाऊंगा तुम युही खिलती रहना कली की तरहा मै युही तुम्हारी झुलफे लहराता फिरुंगा तुम मिठ्ठी बन जाना खेतों की मै बारिश का बुंद बन जाऊंगा फिर मै गिरुंगा आवरगी से तुम पहली बारिश की खुशबू देना तुम चांद बन जाना पूर्णिमा का मै सुनी रात बन जाऊंगा फिर मै बनुंगा बेबस माथा तुम चमकता तिलक बन जाना

तू

रबसा तू बहता जाल बनना मुझसा तू बिछडा काल बनना तुझमें ही मेरा साहिल बस गया लहरों से भी अचल चाल बनना रुठी बातूनी कोयल आज हस जा तू मेरा अनसुना ताल बनना अभी ना दे खोयी आजान ये खुदा फुल का अब खोया लाल बनना भिगी अब पलके यादों के गितोमें तू भी प्यार की रोशन ढाल बनना लेट जा इस कब्र में विवेक अब तू अब्रसी तेज अब शाल बनना

तेरेबिना

दिवानगी पर पागलपन की गोली किसी काम की नही इस नशेली जिस्म पर दवा जहरीली किसी काम की नही तेरी पलकों से जिंदगी ढुंढ लुंगा कही से भी तेरेबिना जन्नत की ये गली किसी काम की नही तेरे हसी मे रेगिस्थान भी भुलेगा सुनापन तेरी खुशबू नही ओ कली किसी काम की नही तुने छुआ तो जुगनू भी चमक गया अपनेआप तेरी रौनक नही ओ लाली किसी काम की नही तुने कदम रखा तो रेत भी मिट्टी बन गयी तेरा रंग नही ओ हरयाली किसी काम की नही तुने देखा और बिना बादल मे मेघधनुष बन गया तेरी नजर नही ओ सहेली किसी काम की नही तेरा साथी बन गया है मेरा विवेक बिनासबुत के तु नही ओ सजी डोली किसी काम की नही

तुम

थंडे दिल मे आग लगाना कोई तुम से सिखे यतिम बने रुह को अपनाना कोई तुम से सिखे झिल का पानी मिल रहा है सागर को धिरे धिरे अंजान बनकर पहेचान बनाना कोई तुम से सिखे काटें भी चुभते नही आज कल इस रेगिस्थान मे गुलाब दे कर दिल खरोचना कोई तुम से सिखे आसमां भी मिलाता है सुरज को चांद से इकरार करके दुरी बढाना कोई तुम से सिखे इस इन्तेहा की हद तो देखो वक्त रुक गया हसते हसते आसु बन जाना कोई तुम से सिखे लब और लब्ज मे ये कोनसी दूरी है? नजर झुकाए नयी शायरी हो जाना कोई तुम से सिखे गाते गाते मर गया है विवेक अभी खुशी से गले लगाकर कत्ल करना कोई तुम से सिखे

अच्छी नही

कोई अंजाना आये और रुलाये ऐसी खामोशी अच्छी नही बेवजहा कोई हसाये यहा ऐसी बेफिक्री अच्छी नही कुछ लोग जलाते है मंजिल हर एक की यहा भी चिंगारी जल जाये ऐसी बेपरवाई अच्छी नही काले बादल कहा से क्यु आये यहा अचानक बंद पलकों से बारिश आये ऐसी विरानगी अच्छी नही एक भी पंछी नही है इस हरे पेड पे घर से दुर जाये ऐसी रुसवाई अच्छी नही दुर दुर तक कोई नही है इस रास्ते पर मिट्टी भी पत्थर बन जाये ऐसी तन्हाई अच्छी नही सदियों से उठा रहा हु विवेक को मै अपनी सोच ही खो जाये ऐसी आवारगी अच्छी नही

कोशिश

आदमी एक अपनासा ढुंढने की कोशिश है खुशबू भिगी मिट्टी की सुंगने की कोशिश है आतिश-जनों का प्रयास था मुझे भी जलाने का अब खोयी हुयी थंडी हवा को खोजने की कोशिश है ये कोनसी घडी है जहा प्यार मे भी है बेबसी ‘किसी’ तस्विर को आवाज लगाने की कोशिश है कैसे रुठेगा ये दिल किसी से इस वक्त? इस दिल की मरम्मत करने की कोशिश है कोई तो भुल गया है यहा शहद प्यारभरा भुले हुये उसको को तलाशने की कोशिश है धिरे धिरे यहा मर रहा था अंदर का ‘विवेक’ अभी सतरंगी हर्फ की तरहा जीने की कोशिश है

शिवजयंती

माझा राजा हरला, होय माझा अजिक्य राजा हरला.. त्याला हरवल तुम्ही, मी सर्वांनी... परवा बाबासाहेबांना हरवल.. आज शिवाजी महाराजांना.. ‘मावळ्यांची’ ही कामगिरी पाहुन महाराजांना काय वाटत असेल ह्याचा विचार न केलेलाच बरा... तुम्ही म्हणाल काय झाल मला अचानक?? आता रहावेना ओ... खरच हा आपला समाज हा असा समुदाय आहे ज्याला सवय आहे लाचारीची.. जमिनदाराची लाचारी, जमिनदार नसेल तर सत्ताधार्‍यांची आणि ते नसतील तर महापुरुषांच्या पुतळ्यांची, प्रतिमांची लाचारी... आणि हो त्या लाचारीत स्वाभिमानही असतो बर का.. आणि मग तो स्वाभिमान जयंती, पुण्यतिथी मधून दिसतो. शाळेत एकदा एकाने प्रश्न विचारला होता की आपण जयंती का साजरी करतो? तर शिक्षक म्हणाले की व्यक्तीच्या विचारांचा प्रसार व्हावा म्हणून आपण जयंती साजरी करतो... पण परवाची शिवजयंती बघितली आणि जयंती ह्या संकल्पनेवरचा विश्वासच उडला... शिवजयंती.. शिवजयंती हा चिंतनदिन आहे.. आत्मचिंतनाचा, सामाजिकचिंतनाचा... चिंतना त्या जानत्या राजाच, त्याच्या धोरणांच, विचारांच... पण नाही.. ही शिवजयंती अशी काही साजरी करण्यात आली की शिवाजी महाराजांचा जन्म शिवनेरी झाला नसुन इंग्लंडच्या राजघराण्