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जानेवारी, २०१८ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

पापा

पापा, तुम ही बताओ तुम्हे लब्जों बयान कैसे करू? ओ नजर जो चेहरा पढती है, ओ आवाज जो सहारा देती है, ओ आसू जो दिखते नही है, ओ डाट जो जल्दी पिघलती है, ओ दर्द जो हसी के पीचे छुपा है, ओ एहसास जो एक साया है, इन्ह सब को तुम ही बताओ पापा कागज पर कैसे उतारू? पापा, तुम ही बताओ तुम्हे लब्जों बयान कैसे करू? पापा, कागज पर लिखी जाती है कहाणीया, उतारी जाती है कल्पना, तुम तो हकीकत हो, सुरज से तेज, सागर से गहरी और आसमान से विस्तृत.. जो हकीकत मुझे जिंदा रखती है, पापा तुम ही बताओ उसे मै कैसे बताऊ पापा, तुम ही बताओ तुम्हे लब्जों बयान कैसे करू

यूँ ही

हर दिन तुम यूँ ही आती रहो रोशनी के बिना सुबह अच्छी नही दिखती तुम बिंदिया यूँ ही लगती रहो चांद के बिना रात अच्छी नही दिखती तुम बाते यूँ ही करती रहो धडकनों के बिना नब्ज अच्छी नही दिखती तुम ख्वाबो मे यूँ ही आती रहो दिल के बिना आह अच्छी नही दिखती तुम दुर ही सही यूँ ही एहसास देती रहो रुह के बिना जिंदगी अच्छी नही दिखती

गणतंत्र दिवस..

गणतंत्र, लोकतंत्र ये शब्द सिर्फ शब्द है इन्ह का अस्तित्व एक ख्वाब है इस ख्वाब मे कौन कौन है सहमे हुये चेहरे यहा ज़िंदा कोई नही है झंडा बेचनेवाले बच्चे गणतंत्र सिक्को मे ढूंढ रहे है तिरंगे के रंग इन्हके रंगो मे अब कहा मिलते है? चौराहे पर भिक मांगती मॉ को क्या बताऊ गणतंत्र क्या है? अब भारत को मॉ बुलाने के लिये यहा बच्चे कहा है? यहा झग़डे है राष्ट्र के लिये धर्म के लिये लडते है किसी की मौत को हम अमन कहते है ध्वजस्तंभ की उंची तेजीसे बढ रही है यहा गरीबी उतनीही तेज दौड रही है फिर भी हे गणतंत्र तुझे सलाम करता हु तेरे लिये जिन्होने खून बहाया है उन्ह की कदर मै भी करता हु तेरे जन्मदिन की मै भी बधाइयॉ देता हु कोई भूखा ना सोये आज के दिन यही दुआ करता हु

तुम

पलकों पर पानी लिये रात निंद बनकर आती है माथे पर चांद लिये यादे ख्वाब बनकर आती है तुम्हारी खुशबू लिये हवा सास बनकर आती है तुम्हारी तस्वीर लिये धडकने नज्म बनकर आती है तुम्हारे संग बिता वक्त लिये शाम बादल बनकर आती है तुम्हारी आवाज लिये बाते बरसात बनकर आती है तुम्हारे संग रोशनी ओस की बुंदे बनकर आती है तुम्हारे संग सुबह हर दिन जिंदगी बनकर आती है तुम्हारे संग नज्म नब्ज बनकर रह जाती है जिंदगी के बिना जिंदगी जिंदगी बन जाती है

ये आसमा

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दो बुंद यहा भी बरसा दे ये आसमा दो बुंद यहा भी बरसा दे यहा जमीन बंजर है सीने पर गहरी दरारे है दो बुंद यहा भी बरसा दे यहा भी लोग भूके है यहा भी लोग प्यासे है ये आसमा दो बुंद यहा भी बरसा दे अब सुक गये है ओंठ खाली है नब्ज ये आसमा दो बुंद यहा भी बरसा दे गालों पर लाली नही मांग रहा थोडी चमडी तो दे दे ये आसमा दो बुंद यहा भी बरसा दे मेरी मांग मेरी बुजदिली नही तेरी बेईमानी है थोडी ईमानदारी दिखा दे ये आसमा दो बुंद यहा भी बरसा दे

तुम

तन्हाई मे लिखा मजमून महफिल मे गीत बन जाता है आईने मे देखा दर्द तुम्हारे आखो मे मोहब्बत बन जाता है फुलों का शबाब विरानगी मे शराब बन जाता है रात का चांद दिन मे अक्स बन जाता है आकाश छूट जाता है तब बादल आसू बन जाते है जिंदगी के टुकडे तुमसे दुर जाते है तब ख्वाब बन जाते है ख्वाबो मे रहकर तुम जिंदगी बन जाते हो.. जिंदगी मे रहकर तुम एक ख्वाब बन जाते हो..