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सप्टेंबर, २०१५ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

अस्तित्व

अस्तित्व एक विराण वास्तु बनलय तिला प्रत्येक किरणांना रोखणार्‍या खदकांनी वेढा घातलाय... पहार्‍याची गरजच नाही इथे सजीवतेचा अंशच नाही आहे तो फक्त पुर्वजांचा बेनाम वावर ह्या वास्तुला भय नाही सुरकुत्यांचभेगांच भीती तर त्या काळ्याकोठडीतल्या काळकिड्यांची वाटतेय एकटेपणावर टोच्या मारणार्‍या जिथे नगाडे वाजायचे तिथे किरकिरतेय रात्र दिवसाही दिपस्तंभाची जागा आता तिमिराच्या वटवाघळांनी घेतलीय काजवांनाही आहे शाप त्याचा ह्या वास्तवाच्याकाळाशार रंगमंचावर अभिनय करता करता रंगीत स्वप्न बघण विसरलोय आता ही वास्तु सोड्ण्याशिवाय पर्यायच नाही ....

गरीबी

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अब गरीबी इनका भी मनोरंजन करेगी भुके नंगे बच्चे भी नाचेंगे आसुभी मिठे होंगे गुमशुदा खामोशीभी चिल्लायेगी गाणे झुठे चलो गरीबी का मार्केटिंग करे नये गरीब बनाये पुराने गरीब खरिदे चलो गरीबी को ग्लोबलायज् करे झोपडपट्टी को टुरिस्ट पोईंट बनाये गोरे लोगों के लिये गरीबी का अ‍ॅप बनाये गरीबी को मोडर्न करे गरीबी को अड्व्हॉस करे गरीबी और गरीब दोनो बढाये उच्छाटन ना करे नही तो फिर अमीरों के लिये गुलाम कौन बने?

तेरेबिना

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तेरे बिना जिंदगी एक मौत खौफनाक मुझे तो बनना है तेरी हर एक अदा का पर मुझे गिला है अफ्ताब के, चॉद के, मेरे बेबस होने पर तेरी यादोंने लिखा है तेरा नाम मेरे अश्कों के, दुऑओ के मेरे इब्तिदा के घर पर तेरी हर मिनट की आखरी सास अगली मिनट की पहली सास अब यही तो है मेरी आरजु मेरी आस क्योकी तेरेबिना जिंदगी एक मौत खौफनाक तेरेबिना डर लगता है     इन्ह शेरो-शायरी का लब्जों के परायेपन का पर आजकल बादलों को भी खबर नही बारिश की और मुझेभी नही देनी खबर मेरे महोब्बत की तेरा होनाही है जन्नत का सफर तुझे देखनाही है खुदा का मिलन तु है तो रातभी लगती है रोशनी के बाग की चमकती कली तु नही तो ये दिनभी लगता है मुर्झे हुये बुंदों की बद्सुरत नदी.. क्योकी तेरेबिना जिंदगी एक मौत खौफनाक इस मौत को भी होता है साया और मै आशिक अकेला... तो आ जल्दी और बन जा मेरा भी साया…