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ऑगस्ट, २०१६ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

तुम इंसान बना दो

याद किया कई बार दिल ने दिल को टुटा तारा दिला दो तुम दिखाई दो कही यहा अब शिशे को ऐसी रोशनी ला दो तुम्हारा नशा इतना चढ गया दिन मे चांद ढुंढने लग गये वक्त सिधा चल रहा है अभी उसेभी थोडी शराब पिला दो नफरत भरी निगाहो से देखा फिरभी नफरत नही कर पाये बैर रखे जमिन भी मिट्टी से हमे नफरत की ऐसी दवा दो तुम छुओ पत्थर धडक जाये होश हमने खोया है कब से फुरसत मिले कभी तुमे तो हमेभी फिरसे इंसान बना दो सामने आना, फिर चले जाना इन्हसे भी सुकुन मिलता है अब कभी आओगे सामने तो सासो मे जरासा दर्द मिला दो

खामोशिया

वक्त खामोश है, इस रात से अलग होकर जिसने चांद की चाह में गगन का रूप लिया है उस दिल की तरहा, सदिओ पुरानी है ये चाहत और  सदिओ से चलती आ रही है ये अमावस  शांत हो गयी है अब दोनो की धडकने, बादल भी थम गये है कही, जिसपर हवा का आना-जाना था ओ चंचल लहरे भी रुक गयी,   आकाश में चमकती तितलियों ने भी अब पलके मिटा दी  दर्द की दर्दभरी दास्तान ले कर जी रहे वक्त से मैं क्या बोलूं? कैसे कहू, क्यू खामोश है तू भी? उसने भी सजाई है मेहफिले हजारो, उसने भी हर कब्र पर  है आसू बहाये  मेरी खामोशिया तो  उन्ह लब्जो की नाराजगी है जिने कोई सुनता नही, मेरी खामोशिया उन्ह आसुओ कि रुसवाई है  जिनको कोई देखता नही, तू भी नही     मैं तो कहा देखा है  वक्त के अश्को को,   वक्त के अल्फाज को सुनेने की कोशिश भी नही की कभी  शायद वक्त मायूस है मेरे से,  मेरी तरहा पर दोनो का साथ चलाना अनिवार्य है वक्त भी चल रहा है और मैं भी, अब तू भी चल दो कदम मेरे साथ..  तेरे साथ में खामोशिया खामोश हो जाती है   

थक गये

इस आंगण में दिया जलाते जलाते थक गये दो दिवारों की रखवाली करते करते थक गये बहरूपियों का मुखौटा लेने निकले थे घर से साफ आईने की सुरत देखते देखते थक गये बदतमीजी से भी शराब नही पी हमने कभी शराफत से तेरी ये दवा पिते पिते थक गये मुहावजा मांग रहे है ये कटे हुये फुल मुजसे उन्ह में हम खुनी रंग भरते भरते थक गये मंजिल नही बदली बस कब्र अलग है आज तेरे इश्क का कफन पहनते पहनते थक गये इसी जगहा पैदा हुआ था विवेक कल परसो यहा मोहोब्बत में तेरे मरते मरते थक गये