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ऑक्टोबर, २०१६ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

मै और मेरी माशुका

मैने मेरी माशुका से कहा की - चेहरे की नुमाइंदगी करता ओस का बुलबुला बन जाऊ मै चेहरे की मासुमियत छुती बारिश  की  बुंद बन जाऊ पर मेरी माशुका इतनी नफरत करती है की उसने कहा- तू बन जा ओस का बुलबुला, मै सुबह की धूप बन जाऊ बारिश की बुंद बन जा, मै जलती आग बन जाऊ फिरभी प्यारभरे लब्जोसे  मैने कहा- पलकों को अपनी नर्म बाहो में समेटती शाम बन जाऊ मै इन आँखो की मेहेरबानी लेने रंगीन तितली बन जाऊ उसने फौरन कहा- बन जा तू शाम नर्म बाहो की, मैं थंडी रात बन जाऊ तितली बन जा तू रंगीन, मैं नरभक्षी फुल बन जाऊ मैं बेहाल, मैने कहा- बालों को अपने कंधोपर लहरता हवा का झोका बन जाऊ भौह की अदाओ को समाने मैं तेरा माथा बन जाऊ उसने अपने बालों को सवरते हुए कहा- तू बन जा हवा का झोका, मैं उसे चिरता पहाड बन जाऊ बन जा मेरा माथा, फिर मैं बदसुरत बन जाऊ थोडी उदासी से मैने कहा- तु पास होने का एहसास, तेरी तस्वीर बन जाऊ तु छुने की निशाणी, मै जमीन की मिट्टी बन जाऊ हसते हुए उसने जवाब दिया- तस्वीर बन जा तू, मैं अदृश्य, देहहीन बन जाऊ तू जमीन की मिट्टी बन जा, मैं पत्थर का तट बन जाऊ यकायक मैनेभी कहा- होली