पोस्ट्स

2015 पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

पाडगावकरांचा मंगेश- एक आनंदयात्री

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भटके पक्षी मधल्या प्रारंभ कवितेतल्या चार ओळी - मी रहातो बोलत: माझे शब्द गर्द पाऊस, माझे शब्द ओल्या उन्हातला फुलपाखरांचा झिम्मा; तू ऐकत असतेस तुझ्यामाझ्यापलीकडे जाऊन; माझे जगणे होते एका गाण्याचा हळुवार प्रारंभ... मंगेश पाडगावकर.. मी तशी त्यांची खुपशी पुस्तक वाचलीत.. जिप्सी, शर्मिष्ठा, भटके पक्षी, कविता माणसांच्या माणसांसाठी, बायबल: नवा करार (भाषांतर व मुक्तिचिंतन) इत्यादी.. पण पाडगावकर हे वाचन्यापेक्षा मी ऐकलेत खुप.. त्यांची गाणी, बालगीते, बडबडगीते... सांग सांग भोलानाथ ने तर पुर बालपण सुट्टीच्या आशेवर अन् शाळेच्या रुसव्या आनंदावर घालवल. येवढच काय तर जुन्या काळी म्हणे त्यांची गाणी गाऊन मुलींना पटवत असत! असो पण का कुणास ठाऊक मला त्यांची 'शर्मिष्ठा'च खुप भाळली... तशी जिप्सी ही भन्नाटच आहे.. पण शर्मिष्ठातल ते काव्यात्मक संवाद विशेषतः ययाती आणि शर्मिष्ठेमधला तो कित्येक छटांनी बहरलेला प्रेमाचा संवाद.. खरच आदिम काळातल प्रेम डोळ्यासमोर उभा करतो.. खर तर मी खुप निराशावादी होतो. काय म्हणतात इंग्लिश मध्ये ते पेसिमिस्टिक... अजुनही आहे थोडासा.. जो काही उत्साही आहे तो केवळ पाडगावकरांमु

रास्ते की दास्तान

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बटवारा हुआ था कुछ साल पहले होली खेली थी कुछ रंगों मे बटवारा कुछ इस तरहा हुआ की मेरा दिल टुटा एक हिस्सा लाहोर तो दुजा दिल्ली जा गिरा असल मे रिश्ते अभीभी है पाकीजा एक ओर गिरता है बच्चा तो दुसरी ओर रोती है मा उस बच्चे के दर्द की उस मा के आसू कि मरम्मत करते करते मै थक गया इतना थक गया की दिल धीरे से धडकने लगा इतना की दिल से दिल मे जाने के लिये सास को भी व्हिसा लगने लगा दुनिया सिर्फ जंग ही देखती है लेकीन ना उस बच्चे ने शरारत कि कभी ना उस मा ने डाटा कभी ये प्यार दुनिया को समझाते समझाते मै सच मे थक गया जिस्म को लिपटे कुराण के जलते पन्ने, टूटी हुई मुर्तीया और सरहद्द पार कर चुकी खामोशीया इन्ह सब के साथ जीते जीते लहोर दिल्ली से दुर चला गया और... मै लावारिस हो गया

दंगा

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बहोत धुआ हुआ था कल शायद लाशे जल रही होगी हजार धरती भी हिल रही थी कल शायद कब्र खोदे होंगे हजार मौत का तांडव देखा था कही तो कही जश्न उस जश्न मे मु छुपाये देखो भगवान भाग रहा है और मौत की चिंगारी पैर छुने दौड रही है यहा सन्नाटा ठिक नही लगता और शोर करना मना है यहा अंधेराभी है मायुस और रोशनी तो गुम हुयी है और मै इन्ह खुनी मलबे मे चल रहा हु ढुंढ रहा हु आदमी की तस्विरे खोज रहा हु बरी की गयी चिजे अब तो हाल यैसा है की आधे दिल को दिमक है तो आधा दिल पत्थर है रात तो बदसुरत थी हि लेकीन ये आसमा तु कब से बन गया बुज्दिल खामोश रहा कातिलों पर धिक्कारहै तेरी रोशनी का अब बहोत दुर गया हु लेकिन वापस आऊंगा जरुर बादलों की गर्जना लेके सन्नाटा मिटाने अफ्ताब के अक्स लेके अंधेरा बुझाने डरे हुये आसमा को होसला देने .. इस धुऐ ने हिलती हुई धरती ने कुछ तो अच्छा किया है....

एक खत माओ के नाम…

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दी थी आवाज मैने भी आमार बारी तोमार बारी, नक्षलबारी मैने भी मनाये थे नंगे जश्न काले सन्नटो मे बहाया है खून खुद का और दुसरो का भी मेरे भाई मेरे दोस्त सब बन गये मालक-उल-मौत पर कब तक जिते गा खौफ पता नही अब मुखर रही ही खुद से खुद की जान एक खत माओ के नाम… गुंगे की आवाज को अन्वर करते करते अब खुद ही बन गया हु गुंग खडे हुये रोंगटे अब नही सभलते काले हात कत्ल करके भी ढूढ रहे है मोती कोयले की खाण में क्या इसी लिये छोडी थी मासूमीयत ? इसी लिये किया था नरसंहार? अब हसी को भी पता नही है राम एक खत माओ के नाम… और एक बार गुंजे गी क्रांती की पुकार उसके सोहबत मे गायेंगे गीत हजार होंगे प्यार के लब्ज साथ समशेर तो अभीभी होगी कटु पर दुसरे हात मे होगा गुलाब मृदू हिंसा को मुहब्बत सिकायेंगे जुलूम को जलता दिया दिखायेंगे मिलकर करेंगे काम एक खत माओ के नाम…

12 डिसेंबर

12 डिसेंबर, खर तर एका बाजु ला माजी कृषिमंत्र्याचा वाढदिवस होता तर दुसरी कडे एका शेतकरी नेत्याच (खरतर महाराष्ट्रातला पहिल्या शेतकरी नेता अस म्ह्णल तरी ते वावग नाही ठरणार) निधन झाल होत. आता नक्की करायच तरी काय? कारण साहेबांच्या 75 व्या वाढदिवसाची तयारी तर कधीपासुन चालु असेल. आणि त्यात शरद जोशींचा देहांत... व्हॉट्स-अप्प चे डिपी आणि स्टेटस बदलण्याशिवाय जास्त काही करु पण शकत नव्हते. शरद पवार हे नाव तर अगदी जन्मापासुन कानावर आदळतय. माझ मुळ गाव शरद पवारांच्या लोकसभा मतदारसंघात येत. हा पण शरद जोशींच नाव मात्र खुप उशिरा कळाल. कदचित 10-11वीत असेन. पश्चिम महाराष्ट्रात ऊस आंदोलन चालु होत. मला सांगलीला, जिल्हाला घरगुती कामातुन जायच होत. तेव्हा सांगलीत ऊस परिषद होती. मी आपल गर्दी आहे म्हणुन घुसलो सभेत. तर शरद जोशी बोलत होते. तेव्हा शरद जोशींनी 2500 रुपये हा दर अमान्य केला होता. आणि खासदार राजु शेट्टी आणि स्वाभिमानी शेतकरी संघटनेच 3000 रुपये दरासाठी आंदोलन चालु झाल होत. तेव्हा पहिलांदा शरद जोशी माहीती झाले. तस लहान असताना शरद जोशी हे नाव ऐकल होत. कधी कधी त्यांची भाषण लावुन रिक्शा गावभर घुमत असायच्य

मौत

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हा ओ सच है मै ही मर गया था कल किसीने दफनाया, किसीने जलाया मुंतजीर था आखिर आ ही गयी ओ घडी उसकी आखो मे और एक बार हसी खिल गयी …. कहते है ये सफर मुख्तसर होता है पर ये रात है की पिघल नही रही अब लगता है ऐसाही पडा रहूंगा समशान मे सनातन काल तक तन्हायी की तो आदत थी लेकीन उसकी मोजुदगी है दर्दभरी उस दर्द का क्या करू? इस कफ़न मे क्या क्या छुपालू? वक्त गद्दार है और ये जिस्म तो उससे भी बडा ओ अंधविश्वास है की मै उसे भूल गया अभीभी उसके गाने गा रहा हु मौत के मेहफिल मे पर काफिर है ये अंधेरा जो सुना रहा है उसे कूच और ही कर रहा हु अंधेरे को भी इख्तियार पर मालूम है ओ नही करेगी इंतजार ओ गांधारी सोच रही है की ये अंधा आशिक फस गया अरे आंख की पट्टी तो निकाल, मैने तो तुजे देखते देखते मौत की मांग मे सिंदूर भर दिया, खुशी से

मूका गोंगाट

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कुठेतरी आग लागली होती काल पण खर तर चिता जळत होत्या असंख्य खुपश्या वस्तू हरवल्यात, जळल्यात… जाळल्यात… मग मीही जाळून टाकल माझ मनुष्यत्वही प्राणी बनून राहिलोय आता फक्त मानव समाजाने अंगावर डागलेली कुंपणेही तोडून नग्न झालोय त्या आगीन काहीतरी सकारात्मक केल! कारण ह्या मानव समाजाचे नियमच काही वेगळे! इथ कुणाच तरी पावित्र कुणाच्या तरी मूत्रात लपलय, अन् कुणाची तरी मुक्ती कुणाच्या तरी स्पर्शात इथ गांधी बापूचा फोटो पोलिस स्टेशनात पण असतो आणि बनावट नोटे वरही अहिंसा झालीय पोरकी अन् प्रेम झालय लुळ, स्पर्शहीन मूर्तीसम ना त्या मूर्त्यांना संवेदना आहेत ना प्रेमाला भाव ना अहिंसेला वाली अन दुर्दैव अस की मूर्ती भंग करू शकत नाही ना अहिंसेच सांत्वन  ना प्रेमाला दवा देवु शकत मग म्हणल सोडूया हा समाजच कारण आजकाल खूप गुदमरत होत आवाजांना शब्दच नव्हते अन् असलेच शब्द तर ते होते भावनाहीन शाश्वत होत्या त्या फक्त वेदना.. त्या बोलक्या षंढ मौनापेक्षा मुक्या प्राण्यांचा संवेदनशील गोंगाटच बरा.. त्यात निदान भाव तरी असतो वेदना जरी असल्या तरी नपुंसकत्व नसत…

क्या करे, अनपढ ओ

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मेरी जुबान मराठी… पर उसे नही आती … मै लिखता हु मराठी पर क्या करे उसे समज मे नही आती मुख्तलिफ लब्जों को मुनज्जम करता हु बहोतही आसान तरिके से फिर भी जुदाई है वही अंधेरा है वही लब्जों की रोशनी तो आती है लेकीन धुंध की चादर इतनी गहरी है की ओ नही सुनती क्या करे मेरी जुबान मराठी… पर उसे नही आती … अब ये अंजुमन नीरस बनता जा रहा है कुछ दिलकश है तो सिर्फ ओ, उसकी खुबसुरती, उसकी बाते मेरी तहरीर तरस रही है उसके जवाब के लिये लेकीन बिच मै इतने सारे सन्देह है की ओ नही पढती क्या करे मेरी जुबान मराठी… पर उसे नही आती … अब सिर्फ आखें ही है जो कर सकती  है काबू उस बेशकिमती खुबसुरती को पर क्या करे ये चश्मा है जो आंखो को भी सिखाता है खामोशी ये कांच के टुकडे सिर्फ देते है दृष्टी विमल पर निगल जाते है सारे भाव क्या करे मेरी जुबान मराठी… पर उसे नही आती … मै लिखता हु मराठी पर क्या करे उसे समज मे नही आती  

टूटा हुआ पूल

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टुटे हुये पूल के उस तरफ मै था जहा वक्त ने खुद को बंदी बनाया है  जहा की हवा मुआवजा देती है  मरे हुये बच्चे के सर को चुमने वाली मा को इस वादी मे तो हर दिन एक लाश मिलती है  अब तो जलते हुये जिस्म कि तासीर भी ठंडी हुई किसीके चिखने पर दुसरी तरफ चिंगारी पेट जाती है  किसीकी फ़र्माइश पर जमीन पर निशान है हजारो गिले शिकावे के निशाण मिटते है कभी? सिर्फ बढते है एक के सात एक यहा से एक नदी बहती थी उम्मीदों की मै देखता था खुद को उस बहते पानी मे सुकून मिलता था दिल को अब ओ भी सूख गयी सुना है दुसरी तरफ एक गाव है  वहा कि मिठ्ठी कुंदन पैदा करती है सुरज कि रोशनी पसीने के मोती बनाती है सुनसान रात भी लोरी गाती है दिये जलते है वहा दुसरोन के उजाले के सात गम के अंधेरे को भी बाटते है एकसात यहा तो काला अब्र भी हिरे बरसता है  उस ओर को जोडना है  ये टुटा हुआ पूल तामिर करना है  अब आधा हुआ है… और अब आधे कि फिक्र भी नही   

माँ

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कभी हम भी थे बद्सुरत मॉ ने टिका लगाया, हम खुबसुरत बन गये लोग कहते है इंसानी दौड मे तुम बुढे हो गये मॉ ने माथे पे चुम लिया देखो हम फिर से बच्चे बन गये मै पढता था रातभर और माँ रोशनी जलाया करती थी यहा दिये जलते है हजारो पर ओ रोशनी नही दिखती ये रिश्ता कुछ अजिबसा है मै होता हु मायुस यहा पलके उसकी होती है गिली मेरी माँ शगुफ्ता है मेरे गम के लिये मन मे है रोती माँ, तू कौन है ? अनदेखा  विश्वास नास्तिक का, अक्स अफ्ताब का या साया कल्पनाओं का? माँ, तू है वक्त मेरे साथ दौडता हुआ माँ, तेरी गोदी मे ही  मेहेफुज था अब अकेला हु डराडरासा आना है तेरी आगोश में फिरसे रोना है दिलो-जान से माँ, तेरी लोरी में फरिश्ते आते थे सुलाने भगवान कि तस्वीरे लगाई लेकिन क्या करे, नींद ही नही आती

क्लास

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सबकुछ है मेरे क्लास में, छत है काले बादलों से बचने के लिये खिडकीया है खिलती हवाओं के लिये धरती है आंचल जैसी सवरने के लिये रोशनी है हर तरह की हर तरह के तम को दूर करणे के लिये सब कूच है मेरे क्लास में एक ओ भी है झुलाफओंसे खेलनेवाली मिठी मुस्कांनवाली कातिल अदाओंवाली उसकी आंखे जैसे ओस के मोती उसकी बाते जैसी प्यारभारी लोरी मै देखता हु उसे बेशर्म से हर पल सोचता हु कभी ना आये कल कभी कोई रोखही देता है उससे आनेवाली किरनों को मै हैराण, बद्दुवा देता हु उस हर एक शक्स को फिर भी आंखे ढुंढही लेती है ना रास्ता जैसे अब्र के बुंदे आसमान को चीर के मिल जाते है सागर को आहिस्ता आहिस्ता पुरा बदन होता है बेहोश जान छुती है उसे नजरोंसे और कभी मिलती है उसकी नजर थम जाती है धडकने रहती है सिर्फ जिस्म की चद्दर खला हु मै, खला है ये क्लास उसके बिना ये कुदरत भी खला है

बेहतरीन अद्भुत खूबसूरती

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ये कुदरत की बेहतरीन अद्भुत खूबसूरती जिसके ऊपर कायर भी हो निसार मै तो मरीज दिल का उसके नशे में, इस मैख़ाने  में कब का गया हार अब फ़रिश्ते भी आजाये ले जाने जन्नत में नहीं जाना इस कुदरत के करिश्मे को छोड़ के वो खफा हो तो भी इनायत होगी उसको देखने के लिए ही आंख इबादत है करती और जब मिलती है आंख उसकी तो भूल जाता हु सौदा जो किया था मौत से भी टूटते हुए तारे, गिरते हुए बुँदे क्या किनेंगे मेरी मुहब्बत, मेरी ख्वाईश उसकी सूरत ही है रुतबे का पैमाना यहाँ कोई रकीब नहीं है पर आशिकों का जमघट निकालता है हर सुबहा, शाम मुझे उन से भी शिकायत नहीं है है तो वो घुस्सा खुद पर बुजदिल होने के लिए डर लगता है उस खूबसूरती की क़ायनात खोने का अधिकार नहीं चाहिए चाहिए सिर्फ एहसास उसके होने का वो एहसासही काफी है जीने के लिए तो जीने  दे इस मैख़ाने में, क़ायनात में प्यार का प्यालाही बहोत है उसकी खुबसुरती पीने के लिए 

सनातन, अनादी प्रेम

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हजारो वर्षांपुर्वीच्या सुसंस्कृत संस्कृतींनी, मानवी वसाहतींनीही बघितलाय अंत त्यांचेही असतील देव धर्म अन् ग्रंथ ते मिटले तर मग आम्ही कसले सनातन अन् कसले अनादी? आम्ही तर झुलणार्‍या पाळण्यापासुनच्या जळत्या चितेपर्यंतच्या यात्रेतले अल्पजीवी. हो अल्पजिवीच कारण वैचारिक स्वातंत्र कधीच मरतय उरतय ते पाच-सहा फूटाच गुदमरणार शरीर आणि त्याच्या भोवतालची झगमगीत वलय संकुचित पुराव्यांनी सर्वांग इतक मलिन केलय की मानवताच दिसेनाशी झालीय.. केवळ हालचाल करतो म्हणुन सजीव अन् बोलतो म्हणून मानव! अश्या आवतारातला हा मानव आज पुजतोय अदृश्य अपप्रवृतींना. त्याच हे अनभिज्ञत्व, अंधत्व त्याच्या गृहीतांची प्रतिमाच जणु! प्रश्न अस्तिकतेचा नाही ना नस्तिकतेचा प्रश्न आहे तो स्वःताच्या अस्तित्वाचा जन्मापासून आलेल हे दासत्व पंगु करतय नवदृष्टी ती पंगु नवदृष्टी, हुंदक्याला आक्रोशाला दाद देणारी बुद्धी यांच्या मिलनातुन होणार तिरस्कारच करतोय कालवश सृष्टीच्या अस्तित्वाला. नकोयत ती तिरस्कार शिकवणारी गृहीते, नकोयत त्यांच्या प्रतिमा, त्या मागच्या भावना हवय ते फक्त प्रेम, प्रेमाच्या असंख्य छटांनी क

मधुबाला

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मधुबाला एक नज्म महशूर शायर की उस नज्म का हर लब्ज अभी का बिता हुआ लम्हा लगता है इस नज्म की अदा आज भी खिदमत करती है मरे हुए दिल की ये दिल भी जिन्दा है वो नज्म भी, उसके लम्हे भी जिन्दा है खो गया है तो वो जिस्म खूबसूरती तो अभीभी कब्र के बाहर है मधुबाला एक कुदरत का हसीन सपना कल के मुर्जे हुए फूल का खुशबूदार नगमा ये सपना तभी टूटता है जब आँख खुलती है ये नगमा तभी मिट जाता है जब वक़्त दौड़ता है ये आँखे तो अभीभी बंद है और वक़्त तो अपाहीच हो गया है मधुबाला एक प्यारासा साहिल जिसकी लहरे है हर नशा के कातिल उसकी बुँदे खुद ही है एक नशा का प्रतिक उस नशीली बूँदो को, उस कातिल लहरों को है अंत पर वो साहिल तो अभीभी वही है लहरों का आना जाना तो समय की चाल है आँख खुलने से पहले नया रूप लेके आ खुलती आँख को देखना है तुझे इस वक़्त को भी फिर से दौड़ना है उसको भी छुना है तुझे आ जल्दी और मेरी कश्ती को तेरे साहिल में पन्हा दे नहीं तो धड़कते दिल से, खुली आँख से डूबने तो दे

अस्तित्व

अस्तित्व एक विराण वास्तु बनलय तिला प्रत्येक किरणांना रोखणार्‍या खदकांनी वेढा घातलाय... पहार्‍याची गरजच नाही इथे सजीवतेचा अंशच नाही आहे तो फक्त पुर्वजांचा बेनाम वावर ह्या वास्तुला भय नाही सुरकुत्यांचभेगांच भीती तर त्या काळ्याकोठडीतल्या काळकिड्यांची वाटतेय एकटेपणावर टोच्या मारणार्‍या जिथे नगाडे वाजायचे तिथे किरकिरतेय रात्र दिवसाही दिपस्तंभाची जागा आता तिमिराच्या वटवाघळांनी घेतलीय काजवांनाही आहे शाप त्याचा ह्या वास्तवाच्याकाळाशार रंगमंचावर अभिनय करता करता रंगीत स्वप्न बघण विसरलोय आता ही वास्तु सोड्ण्याशिवाय पर्यायच नाही ....

गरीबी

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अब गरीबी इनका भी मनोरंजन करेगी भुके नंगे बच्चे भी नाचेंगे आसुभी मिठे होंगे गुमशुदा खामोशीभी चिल्लायेगी गाणे झुठे चलो गरीबी का मार्केटिंग करे नये गरीब बनाये पुराने गरीब खरिदे चलो गरीबी को ग्लोबलायज् करे झोपडपट्टी को टुरिस्ट पोईंट बनाये गोरे लोगों के लिये गरीबी का अ‍ॅप बनाये गरीबी को मोडर्न करे गरीबी को अड्व्हॉस करे गरीबी और गरीब दोनो बढाये उच्छाटन ना करे नही तो फिर अमीरों के लिये गुलाम कौन बने?

तेरेबिना

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तेरे बिना जिंदगी एक मौत खौफनाक मुझे तो बनना है तेरी हर एक अदा का पर मुझे गिला है अफ्ताब के, चॉद के, मेरे बेबस होने पर तेरी यादोंने लिखा है तेरा नाम मेरे अश्कों के, दुऑओ के मेरे इब्तिदा के घर पर तेरी हर मिनट की आखरी सास अगली मिनट की पहली सास अब यही तो है मेरी आरजु मेरी आस क्योकी तेरेबिना जिंदगी एक मौत खौफनाक तेरेबिना डर लगता है     इन्ह शेरो-शायरी का लब्जों के परायेपन का पर आजकल बादलों को भी खबर नही बारिश की और मुझेभी नही देनी खबर मेरे महोब्बत की तेरा होनाही है जन्नत का सफर तुझे देखनाही है खुदा का मिलन तु है तो रातभी लगती है रोशनी के बाग की चमकती कली तु नही तो ये दिनभी लगता है मुर्झे हुये बुंदों की बद्सुरत नदी.. क्योकी तेरेबिना जिंदगी एक मौत खौफनाक इस मौत को भी होता है साया और मै आशिक अकेला... तो आ जल्दी और बन जा मेरा भी साया…

माफीनामा

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गज़लों की कायनात तो बना नही सकता, मजबूर हु चंद लम्हों का माफीनामा लिख सकता हु नुर-ए-खुदा के कदमों पे कातिल जो हु हर लब्जों का अंजान अंजुमन मे अजनबी अकेलेपन के आसु आतेही है ना गिरते हुऐ बुंदे गलती करतेही है ना उस गिरते हुऐ बुंदों की ओर से मै मांगता हु माफी, उस अकेलेपन से परेशान, खुद की ओर से मांगता हु माफी अजनबी होने के लिऐ मांगता हु माफी माफ कर देना वरना ये लब्जभी खफा हो जायेंगे मुजसे

खुबसुरती

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इस खुबसुरती की पुजा करु या महोब्बत करु या लिखु कोई ग़ज़ल समझ मे नही आ रहा क्या करु पागल सा हो गया हु गमजदा दिल मे अभी तो जान आयी है अभी तो इस रुह ने नया जन्म लिया है अभी तो अश्को ने रुख बदला है बादलोंने अभी तो काला रंग लिया है इस मोसमने मुझेभी नया आशिक बनाया है तो फिर कोई तो कहो इन्ह पलकोंसे की ना मिटे वक्त से की थम जाये मुझे देखना है इसे मरते दम तक ओ खफा होने तक उसका खफा होना और मेरा मर जाना एकही तो बात है अब तो सहमी हुई धडकनों कोभी है उम्मिद उसके आने की मेरी तखईल कोभी है आस उसको पाने की मेरी तहरिर का इब्तिदाभी वो इन्तेहा भी वो फिरभी मै हु खामोश इस खामोशी के लिऐ, इस बेवफाई के लिऐ पुरी कायनात गा रही है बैन अब आंख हो रही है नम सुक रहे है ओठ क्योकी उसकेबिना जिंदगी एक खौफनाक मौत

क्रांती

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उनकी सांसे हो रही है यतीम और लोग कह रहे है मजाक है ये उनकी आवाज हो रही है गुमशुदा और लोग कह रहे है मजाक है ये रुह जानती है लढना धडकने समजते है खत्म होना फिरभी तुटती जमुरियत के वजिर-ए-आलम हरा देते है उनको हर पल हर दम इनके यहा रोने की गुनगुनाहट जनाजा भेजती है खुले बाजार मे और अब तो कफनभी महेंगा हुआ है जान से गुंज रही है सिर्फ घायालों की पुकार मुर्दाघर बन गया है हर एक मकान तो फिर जान को तो जानाही है एक दिन तो फिर क्रांती तो होगीही, खुन तो बहेगाही, गोली तो छुटेगीही फिर चाहे निशाने पे हो इनका सिना या कलंकितों का जिना मरना तो हैही लेकिन अब आसुओं के बिना

परींदे

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ये परींदे उड जा खुले आसमान मे बेजुबान होंगी खामोशीया कफनभी होगा महेंगा पर सीने मे सिर्फ तेरीही जान होगी... मै तो किंकर हु जालीम अंजुमन का शौकिन हु लज़्ज़त-ए-गिरिया का ताबिर के मेहबुब का दिवाना हु पर सच मे तो कोई मरासिम नही मेरा अकेलाही इम्कान करता हु किसी के होने का... अब तुजमेही है शम्मे की आखरी उम्मिदे रंजिश लेके बैठी है वो मुजसे मेहबुब तो बची है सिर्फ आखों मे खफा हो गयी थी ओ अब हो गयी गुमशुदा तलाश तो अभीभी करता हु लहु को तोड मरोड के फिरभी जिंदा हु मरता हु तभी जब आते है याद उसके कातिल खंदा-ए-लब... मै तो गम के अंधेरे मे डुबा बद्नशिब तु तो बेवफा खुले आसमान का सिकंदर प्यार की रोशनी तिलक लगती है मस्तिष्क पे और मेरा शिर कब का कट गया मैदान-ए-जंग मे अब जिंदा हो के भी मुर्दा बन गया हु... अभी तु मेरी भी उम्मिद बन गया है ..... किंकर – slave अंजुमन – society लज़्ज़त-ए-गिरिया - taste of tears ताबिर – meaning of dreams मरासिम – relationship इम्कान – possibilities रंजिश - enmity खफा – angry खंदा-ए-लब – smiling lips बेवफा – errant

हिजड्यांच्या गावात हरवलोय...

हिजड्यांच्या गावात हरवलोय... पुर्ण लिंगाच्या पुरषी आखाड्यात भरणार्‍या लाखो कुस्त्याचा प्रेक्षक होता होता रस्ता चुकलोय... इथ पोट भरायला अपुरे आहेत भाकराचे तुकडे, मर्दानीला तोंडी लागतात चुरगळणारे लचके बाजारही भरतो तो उपासमारीच्या गांध्यांना खाजवणार्‍या, वासनेच्या साखळदंडाने जखडलेल्या 'भोगवस्तुंचा' त्यांच्या किंचाळण्याला आवाजच नाही चामड्याला वेदना अन् देहाला किंमत काहीच नाही... घरात, घराबाहेर, धर्मस्थळांत, धर्मस्थळाबाहेर, शाळेत, शाळेबाहेर, खाजगीजागेवर, सार्वजणिक रानात उडताहेत फवारे अर्धमेल्या विर्याचे कितीही नमन करा आर्याचे जळीतकांड होणारच 'भोगवस्तुची' राख होणारच रक्षाविसर्जनही होत ते दलालांच्या दलदलितच... माडींत लिंग कुजवणार्‍या हिजड्यांच्या गावात हरवलोय... मिशीवर ताव मारणार्‍या शण्डाच्या वस्तीत हरवलोय... माझ पुरुषत्व संपण्याच्या आधी, ह्या हिजड्यांसारखा शण्ड होण्याआधी नव गाव दिसु दे...

मुर्तिभंजक

हे मुर्तिभंजका परत ये परत ये सहानुभुतीची कुर्‍हाड घेवुन कमरेत वाकलेल्या, चेहर्‍यात लाचारलेल्या अन् देहाने थकलेल्या बळीराजाची मुर्ति भंगायला.... हे मुर्तिभंजका परत ये परत ये सुडाची तलवार घेवुन पोटाने पुढारलेल्या, मनाने निर्मम एका हाताने सलाम अन् दुसर्‍याने हलाल करणार्‍या श्वेतवस्त्रधारित रानट्यांची मुर्ती भंगायला.... हे मुर्तिभंजका परत ये परत ये सद्बुद्धीचा सुरा घेवुन डोळ्याने आंधळ्या, कानाने बहिर्‍या, तोंडाने मुक्या अन् स्पर्शाने बधीर असलेल्यांची हतबल मुर्ती भंगायला अन् निघुन जा कायमचाच आता मुर्तिकारका तु ये काळ्या कठीण पाषाणासवेत लाथ मारेल तिथ पाणी काढणार्‍या, लाथाडल तर चिरडणार्‍या मग बांध बळीराजाच्या मुर्त्या मुर्तिकारका पुन्हा ये पांढर्‍या ठिसुळ दगडासवेत रंगाप्रमाणे शुद्ध रहाणार्‍या, डाग पडताच चुरा होणार्‍या मग बांध श्वेतवस्त्रधारितांच्या मुर्त्या मुर्तिकारका पुन्हा ये तांबड्या पत्थरासवेत मरणार्‍याला रक्त देणार्‍या, मारणार्‍याचे रक्त काढणारर्‍या मग बांध संवेदनशील मुर्त्या शेवटी प्राणदेवता तु ये अन् जीव टाक त्या मुर्त्यांमध्ये कोणताही भेदभाव न करता

क्रांती

गर्जा जय जयकार क्रांतीचा गर्जा जय जयकार कुसुमाग्रजांच्या सुंदर ओळी ... पण खरच कधी गरजला क्रांतीचा जयघोष ह्या भुमीत? झाल्या त्या बर्‍याचश्या घोषणा व थोड्याश्या कृत्या उठावाच्या अन् बंडाच्या. वैज्ञानिक क्रांत्या झाल्या असतिलही पण राजसत्ता उलथुन टाकणार्‍या क्रांत्या कधी झाल्याच नाही. स्वातंत्र्यपूर्व काळात स्वातंत्र्यासाठी केले गेलेले उठाव असो किंवा स्वातंत्र्योत्तर काळात झालेली असंतोषजनक आंदोलने मग ते जेपीपासुन ते अगदी आण्णा हजारेंपर्यंत असो ही क्रांतीच्या कोणत्याच परिभाषेत बसत नाहीत. कारण खर तर ह्या उठावामुळे किंवा आंदोलनामुळे कोणतीच राजसत्ता उद्वस्त झाली नाही ना नव्या राजसत्तेने, लोकसत्ते श्वास घेतला. स्वातंत्र्यपूर्व उठावामुळे ब्रिटीश राजवट संपुष्टात आली असली, लोकशाहीची बिजे रोवली गेली असतीलही पण नवीन राजवट, राजसत्ता किंबहुना तत्तकालीन बुद्धीजीवींना अभिप्रेत अशी व्यवस्था अस्तित्वात आली अस म्हणणे हे सुर्यास्तावेळी सुर्यनमस्कार करण्याइतक अतिउत्साहाच अन् तितकच बालिशपणाच ठरेल. केवळ एखादी व्यवस्था मोडुन काढण म्हणजे क्रांती नव्हे तर त्या व्यवस्थेला पर्यायी अन् तत्कालीन क्रांतीकारकांनी स

प्रारब्ध

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प्रारब्धाचा अनन्वयार्थ काढता काढता, वर्तमानाचा गुंता करून टाकतो हा देह नखशिकांत दारिद्रच्या जखमा बाळगणारा.. जमिनीच्या आट्यांच्या अन् पावलाच्या भेगांच्या मिलनाचा सोहोळा म्हणजे आसवांच्या अक्षदा अन् उपासमारीच्या बैठका.. आश्वासनाच्या गर्दीत संवेदनशिलता हरवते अन् उरते ते फक्त चालते-फिरते बुजगावने, शेतात फाटक आभाळ बघनारे मतदान केंद्राबाहेर रांगा लावनारे, जल्लोश यात्रेत गुलाल उडवनारे, अन् रात्री इमानदारीच्या गुलामगिरिची फळे नुसतिच चाटनारे... मग मातिची उरली-सुरली नाळ तोडताना विकासाच्या ओवी गातो कस्तूरीमृगाच रूप घेतलेला मारिच, अपहरण होत ते कुरतडलेल्या काळीजाच, हाती रहात ते शांत लटकलेल बुजगावन, अन् प्रारब्ध मागच्या जन्माच व ह्या जन्माच, पुढच्या जन्मासाठी..

@ 5th May, Karl Marx's Birthday

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असंख्य , बंदिस्त पाखरांना मुक्तीचा संदेश देणार्‍या त्यांच्या पंखांना सशस्त्र क्रांतीचे बळ देणार्‍या देवदूताने आज पहिला श्वास घेतला ह्या भिन्नतेच्या प्रदुषित समाजात , पण हे देवदूता , शेकडो वर्षे झाली , तरीही तुझा अग्रदूत आजही भुकेलेल्या कारखानदारांना , आसुसलेल्या सावकारांना स्वतःच्या मांसाचे लचके स्वतःच्याच नखाने ओरखडून दाखवतोय नैवेद्य घोषणांसह , अन् मोबदल्याच्या भिकेच्या भाकरावरच मायच तेराव उरकतो. चिरफाड करणार्‍या हाताचा रंगही हिरवा , विकासाचा , भरभराटीचा प्रतिक ! असला विकास कोणत्या सावरकर-आंबेडकर-गांधी-नेहरुंना अभिप्रेत होता कुणास ठाऊक ? आमिर खानच्या तात्विक , सुखद अंताच्या चलचित्रात रमणारा तुझा नेता , कधीच सुखावला नाही तुझ्या स्वप्नात , तुझ स्वप्न – संग्रह , वास्तवाच्या चलचित्रांचा , तुझ्या नजरेतला समाज कधी स्वप्नाळला नाही कोणीच . पाचवीला पुजलेल्या अन् हाता-गळ्यात अडकवलेल्या जातीच्या गंड्या-दोर्‍यांना सोडवलच नाही , मग वर्गसंघर्षांची पहिली पायरी दिसणार तर कशी ? कोसोदुर असलेल्या शोषितांच्या डबक्यांतच तुझा राजा गुंतलाय , तुझ materialistic diele

महाराष्ट्रदिन

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राकट देशा कणखर देशा दगडाच्या देशा प्रणाम घ्यावा माझा जय श्री महाराष्ट्र देशा आज तुझा छप्पन्नावा वाढदिवस, निदान आज तरी नकारार्थी बोलायला नको. पण चिंतन नक्की करायला हव. महाराष्ट्रा, तु, विविधतेने नटलेल्या भारतातील एक वैभवशाली राज्य. ज्याचा भूतकाळ महासागराच्या खोलीहून अधिक खोल पण तितकाच ज्वलंत. मोघलाईत पोळणार्‍या उन्हाला, ठेचकाळणार्‍या सह्याद्रीला अन् पिसाळलेळ्या मुघालाला न जुमाणता लढाया करणार्‍यांपासून, गुलामगिरीत लाचारीच्या भाकरीला लाथाडुन बलिदान देणार्‍यांपासून ते तुझ्या निर्मितीच्या रक्तरंजित इतिहासात रक्त सांडणार्‍यांपर्यंत सर्वांचाच तुला अभिमान आहे, माहितेय. पण नंतरच्या काळातही तुझ्या नावाच्या जयघोष सातासमुद्रांपार निनादल. सचिन तेंडुलकर, सुनिल गावस्कर, लता मंगेशकर यांनी तर आपापल्या क्षेत्रात वेगळाच ठसा उमठवला. पण बाकीच्यांनीही तुझ नाव सुवर्ण अक्षरांनी कोरल. वयाच्या ऐकोणिसाव्या वर्षी एव्हरेस्ट पादाक्रांत करणारी कृष्णा पाटिल, दुचाकी निर्मितीतला जादुगार वर्डे यांनी स्वतःच वेगळ नाव तयार केल. अस म्हणतात की मराठी माणसाला, तुझ्या भुमीत जन्माला येणार्‍याला व्यवसाय करता येत नाही.

India-Palestine

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Now I am finally going to discuss the relation between India and Palestine. The relationship between India and Palestine are originated from independence of India from British rule. 10 million $ relief is provided to Palestine by India. 1st direct relationship is established in 1974 but it is recognized in 1988. India was 1st non Arab country who support Palestine. Although there is huge increase in bilateral trade in Indo - Israel trade, India will vote for Palestine in U.N. In Vajpayee's government, Israeli Prime Minister Ariel Sharon visited to India but then also there is no change in India's view. In UPA government, the relation of Israel and India forced to change the India's view about Palestine but then also there is no change. Now Israel government sent their diplomats to India to convince. But Modi government is not interested in that issue because India is known for supportive nation for the nations who struggle for independence. So India always support Palestin

काळ

काळाच्या त्सुनामीत वाहून गेलेल्या झाडांची वाट बघतोय वाचलेली लव्हाळे आता उंच गगनाला भिडलेत ह्या सरत्या क्षणांनी सरणावरच नेऊन ठेवलाय स्वतःला अन मला सुद्धा फाटक्या आभाळाच्या गवाक्ष्यातून येणारा प्रकाश दररोज आठवण करून देतोय भूतकाळातील ओसांडलेल्या ढगफुटीची अन उतू गेलेल्या भरतीची वाकळदोऱ्याने शिवलेल्या जखमा दुर्मिळ झालेली संजीवनी शोधताहेत आजच्या पाण्याची एकतर वाफ होतेय नाही तर होतोय बर्फ पण जगण्याला ते  खळखळणार जीवनच हव आभाळाच्या गवाक्ष्याला पाहिजे भिरभिरणार थव नव्या दन्तमजणाबरोबर जुनी कडूनिंबची काडीही घ्यायचीय कृत्रिम आनंदाला खर हास्य तर मिळेल ….   

विभक्ती

आदिम काळापासून असंख्य जन्म घेतला हा आत्मा असाच विवस्त्र सर्पासारखा विव्हळत असेल कधी कबरीवर तर कधी चितेवर साम्य इतकच कि प्रत्येक क्षणी विषाची पिशवी अडकलेली असेल गळ्यात कोणी जमिनीत गाडला असेल तर कोणी राख केली असेल पण दररोज होणाऱ्या मरणाच काय? कोण करणार त्याच अस्तिविसर्जन कोण करणार दफन ? असंख्य आसवांची सलामी देऊनही रीती उरतात जमिनीतली चरे पण फिकिर कोणाला त्याची ? पोपटाने उचललेल्या पत्त्याला विधिलिखित सत्य मानणारे आज 'मार्गदर्शन' करताहेत मुक्तीचे मग हाती आलेल्या स्वप्नांच्या चिंद्या दिसतात प्रेतवस्त्रासम कफल्लक झालेल्या स्वप्निलकिरणांना सांत्वन करण्याखेरीज कायच नाही राहत त्या संत्वानाने मर्यादा घातल्यात त्याच्यावर ते तर माझ्या निष्क्रियतेच प्रतिक! आलेल्या हुंदक्याला अन सुटलेल्या उच्छश्वासाला थांबवू नाही शकत पण ह्या विभक्तीच्या ठसक्याचा धसकाच घेतलाय तरीही मनाला लागलेली कीड आता जाणार नाही पोकरून काढलाय तनयाचा अंशन अंश पोकरलेल्या तनयाला सध्या विश्रांती हवीय सरणावरही चालेल अन भूमीच्या पोटातही पण जगायचंय त्यालाही निदान पौर्णिमेपर्यंत कारण चंद्र कितीही रागाव

पाऊस

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आज पाऊस पडला.. आजारपणातही जीव मेघगर्जनेत चिंब भिजला आठवणीचा झरा पुन्हा ओसांडला.. आणि आठवणीत तू नसशील तर आठवणीची व्याख्याच चुकीची ना? चर्‍हट्याने बांधलेल्या मनाला मग मी मोकळ केल  भेगाळलेल्या पावलांना वेडावलेल मन दूर दूर घेवून गेल प्रत्येक आठवणीतली तुझी प्रतिमा संजीवनीच, माझ्या मुडदूसावलेल्या देहासाठी तुझा स्पर्शाच्या जाणीवेने शहाराच आणला विरहाच्या प्रस्थापित दुःखाला धक्काच बसला.. त्याच्या जखमांवर मलमपट्टी करणच सोडलंय तुझ्याबरोबरचे क्षणच खपली बनतात पाऊसाच्या वाढत्या वेगाबरोबर मन बागडल बेफाम गुलमोहराच्या रंगात रंगल ज्याला पाठ टेकून आपण रंगवायचो स्वप्न अन ज्या तलावाकाठी आपण हरवायचो एकमेकांत त्यात डुपक्या लावल्या असंख्य मग शेवटी वरुणराजा थकला.. नाचणाऱ्या मोर बरोबर मनही शांत झाल आता पुन्हा तोच विरह तोच एकटेपणा पण विरह हा तर प्रेमाचा सांकेतिक शब्द! हा शब्द नीट पार करूया ह्याला वाटणी नाही त्याला आठवणीची जोडणी देऊया …. प्रेम हे मिळणारच …. अश्वस्थामाबरोबर अमर असलेली दुसरी गोष्ट म्हणजे प्रेम त्याला तो शाप आहे आणि प्रेमाला … वरदान

मराठी

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मराठी.. मुकुंदराजाने वाढवलेली, चक्रधरांनी शिकवलेली, ज्ञानेश्वरांनी पावन केलेली, शिवाजींनी गाजवलेली मराठी.... बहिणाबाईंची अशिक्षीत सुसंस्कृत बोली अन् तुकारामांची माणसाळलेली ओवी मराठी लाखोंनी जपलेली, अन् लाखोंना जगवणारी.. निःधर्मी, स्वाभिमानी,सर्वसमावेशक जीवनशैली.. पण... यादकालीन राजभाषा आज घेतेय कृत्रिम श्वास, होतेय नापुत्रिक.. अटकेपार जाणारी आज गुदमरतेय अटकेतच.. तिच अस्तित्व मराठी शाळेच्या काळ्या फळ्यावर दुकानांच्या पाट्यांवर अन् राजकीय पक्षांच्या अजेंड्यावर.. पण भाषा कधीच नसते टाकाऊ, असेलच काही तर तो अभागी भाषक पुन्हा उगवेल,दौडेल मराठी.. सह्याद्रीच्या कुशीत गरजेल मराठी..... मराठीला माझा मानाचा मुजरा...

पुरोगामीत्व

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शाहूंच्या भूमीत पडलेला रक्ताचा सडा बघूनही कस घ्यायचं पुरोगामीत्वाच नाव ? विवेकाची फाटकी गोंधडी पांघरून किती दिवस आणायचा बुद्धिमत्तेचा आव? किती युगे करायची शोकांकीकतेची हाव? कफ़ल्लकतेची मर्यादा ओलांडणारे श्वास झालेत यतीम रक्ताळलेला देहही होतोय निर्मम गुलामगिरीवर समाधानी आहेत बहुसंख्य स्वतंत्र जीव, स्वतंत्र्याचा हावभाव करणारे, त्याची काम म्हणजे सडलेल्या फुलांची माळ शहिदांच्या तजबिरिसमोर ठेवायची अन अश्रू गाळायचे आणि तेवढंच केल तर उद्याचा कालिदास कौरवांची यशोगाथा लिहील विवेकाचा पराभव इतिहास म्हणून सांगितला जाईल स्वातंत्र्य म्हणजे सत्ताधीशांनी भिक म्हणून फेकलेली पोळी नाही, ते तर जन्माबरोबर आलेल जुळ आहे. त्याच्यासाठी विनवणीची नाही तर गरज आहे युद्धाची वैचारिक युद्धाची, म्हणूनच आता शोकाला काही अर्थ नाही लढणाऱ्याने फक्त लढायचं बुडायचं नाही कधी शोकात शहिदांना सलाम करून पुन्हा उतरायचं युद्धात आता या शस्त्रांच्या वाराला वैचारिक बाणाने उत्तर द्यावे लागेल कारण तो अमर आहे क्षणिकतेचा शाप तर हिंसकांना आहे... कॉम्रेड पानसरे, काळजी करु नका तुमचे विचार आम्ही नक्कीच पुढ

शिवजयंती

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प्रौढ प्रताप पुरंदर, क्षत्रिय कुलावतंस, सिंहासनाधीश्वर,बहुजनप्रतिपालक, महाराजाधिराज योगिराज महाराज श्रीमंत श्री छत्रपती शिवाजी महाराजांचा विजय असो महाराज मुजरा असावा, आज सगळ्या ठिकाणी तुमचा जयजयकार असेल. खुप ठिकाणी मिरवणुकाही निघतील. प्रत्येकातला 'मर्द मराठा' आज जागा होईल. काहीजणांचा दुसर्‍या कोणत्यातरी तारखेला जागा होत असेल. असो, पण तुम्हाला प्रश्न पडला असेल की फक्त आजच का? कारण अहो राजे, आजचा हा तुमचा मावळा कुंभकर्णाचा अवतारच आहे. कुंभकर्ण निदान सहा महिने जागा तर होत होता प ण तुमचा मावळा अजुन निद्रावशेतच आहे.. जागा झालाच तर तो केवळ एका वितीच्या पोटासाठी..तेही भरतो तो गुलामगिरीने... आता तुम्ही म्हणाल की ह्या राज्यात कोणताच हिरा नाही का? अहो राजे तुमच्या माझ्या ह्या राज्यात जन्माला येणारा प्रत्येक जीव हा हिराच आहे. पण काहीजण स्वःतलाच ठिकर्‍या मारुन घेतात आणि बाकीचे कोणत्यातरी कोळसाच्या खाणीत सडत पडतात. पण उरलेले हातावर मोजणारे हिरे हे राज्य उजळुन टाकत आहेत. पण बोटावर मोजणारेच? विचारात पडलात ना राजे? इतका मोठ्ठा इतिहास असुनही तुमचा मवाळा उदासिन कसा काय? अहो राजे पण तुमचा खरा

Kashmir is not Palestine and India is also not Israel

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Before going to discuss on Palestinian and Naxalite, I would like to write on difference and similarity between Palestinian and Kashmiri militant. As we know that 39,145 sq miles area of Kashmir is under India’s control. 33,145 sq miles area of Kashmir is under Pakistan’s control while China has 14,500 sq miles under its control. India, Srinagar is capital and Muzaffarabad is capital in Pakistan.like other disputes the Kashmir dispute is also due to British. When British were leaving the India, they partitioned India into two countries – Pakistan (Muslim majority) and India (Remaining people special Hindu majority). But after independence there were some states which were autonomous. For example- Hyderabad Deccan, Jammu and Kashmir. They were fully independent to decide where to go (to join the Pakistan or remain in India or independent). But iron man of India, Saradar Vallabhbhai Patel and PM of India Jawaharlal Nehru used very strong action to resolve these state in India. But dur

संघर्ष नात्यांचा

आकाशात उडणाऱ्या पाखरांची फसगत झाली … सूर्योदयाचा सूर्य चक्क उगवलाच नाही … उगवला तो काळोख ओवाळून टाकलेला विना ज्योतीचा … भयभित झाली पिल्ल , अचंबित पाखर कस घडल काय घडल ? घरटी कंपली संपली प्रेमछाया भयाण सृष्टीत ' हिरमुसली पहाटेची उष्टी आद्रता पक्षीभक्षकांच्या वाढल्या चाली पडल्या रक्ताच्या राशी प्रतिबिंबात दिसला तो फक्त आक्रोश बेसुऱ्या आनंदाचा … मग शोध सुरु झाला कारणांचा विश्वासघात कि बळजबरी का हा नाकर्तेपणा संबंधातला ? पाखर अडकली प्रश्नचिन्हात दडली इवल्याशा घरट्यात उमगल उत्तर जेव्हा वारा धावला सुर्य गेला होता . विश्रांतीला ढगांसोबत मैत्री जपण्यासाठी …. पण पाखरांच्या मायेच काय? ज्यांचा जीवनकोश सुरु होतो त्याच्याबरोबर आणि  संपतोही त्याच्यासवेत त्यांचं नात इतक गौण कि रक्ताच्या पाकानेही न भराव मन खगयाच ? का त्याच्याच क्ष किरणांनीच आदू केलीय त्याची दृष्टी ? कि हरलाय पाखरांचा देवता समतोल राखण्यात ? संघर्ष नात्यातला नेहमीचाच एकाला हवीय जीवनभराची साथ तर दुसऱ्याच जीवनच घेत अनंताचा ध्यास एकाला हवय दुसऱ्याची बंदिस्त सावली तर दुसऱ्याला हवीय मोकळी उघड्या मा

संस्कृतीरक्षक

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प्रेमाच्या पाखराची पिसे उपटून, त्याच्या विव्हळण्यावर हसणारे, 'संस्कृतीरक्षक', हे ना तर विष्णूचे अवतार, ना पैगंबरांचे वारसदार हे तर भ्याड संस्कृतीतले नग्न पुतळे हे पुतळे श्वास घेतात, हालचालही करतात, खातातही पण, प्रेमआंधळ्या रोग्यांचे शोक हिंसा, भय, हुकुमत एवढाच त्यांचा शब्दकोश, हिंसा करून भयभितांवर गाजवायची हुकुमत त्यांचा मड्यावर थाटायची चूल, अन् करायचा शाकाहार मांसाचा प्रेमाला इतक केलाय संकुचित की ते अदृश्यच झालय सगळ्यांनीच काळजी घेतलीय नवी प्रेमकथा न होण्याची लिहिणाऱ्याचे हात छाटायचे, बोलणाऱ्याची जीभ, अन् करणाऱ्याला द्यायचा मृत्यूदंड … आता प्रतीक्षा आहे कलिची ह्या कलियुगाचा कलि, जो जन्म घेतो प्रेमातूनच म्हणून प्रेम तर करावच लागेल….

Israel-Palestine @ current

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Israel-Palestine @ current Palestine has filed a request to Hague to investigate Israeli war crimes during the 50 day war in Gaza with letter of accession to International Criminal Court. Palestine president Mahmoud Abbas signed the request to International Criminal Court to investigate the use of force of IDF. We guard our people in every place, and the crimes committed against our people in eliminating them, settlements, destruction, and aggression against Gaza, they haven’t passed statutes of limitation and those who commit the crimes need to deal with the results - Erekat (Chief Palestinian Negotiator). He submitted the letters of accession to 20 international treaties including the Rome Statute. And on the other hand spoke person of IDF said that “We don’t feel threatened. We know our Israeli Defense Force. We know the way they act. Know the way we investigate ourselves. So this is not our concern. This their concern” Hamas is Abbas’s principal challenger on Palestini