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ऑगस्ट, २०१५ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

माफीनामा

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गज़लों की कायनात तो बना नही सकता, मजबूर हु चंद लम्हों का माफीनामा लिख सकता हु नुर-ए-खुदा के कदमों पे कातिल जो हु हर लब्जों का अंजान अंजुमन मे अजनबी अकेलेपन के आसु आतेही है ना गिरते हुऐ बुंदे गलती करतेही है ना उस गिरते हुऐ बुंदों की ओर से मै मांगता हु माफी, उस अकेलेपन से परेशान, खुद की ओर से मांगता हु माफी अजनबी होने के लिऐ मांगता हु माफी माफ कर देना वरना ये लब्जभी खफा हो जायेंगे मुजसे

खुबसुरती

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इस खुबसुरती की पुजा करु या महोब्बत करु या लिखु कोई ग़ज़ल समझ मे नही आ रहा क्या करु पागल सा हो गया हु गमजदा दिल मे अभी तो जान आयी है अभी तो इस रुह ने नया जन्म लिया है अभी तो अश्को ने रुख बदला है बादलोंने अभी तो काला रंग लिया है इस मोसमने मुझेभी नया आशिक बनाया है तो फिर कोई तो कहो इन्ह पलकोंसे की ना मिटे वक्त से की थम जाये मुझे देखना है इसे मरते दम तक ओ खफा होने तक उसका खफा होना और मेरा मर जाना एकही तो बात है अब तो सहमी हुई धडकनों कोभी है उम्मिद उसके आने की मेरी तखईल कोभी है आस उसको पाने की मेरी तहरिर का इब्तिदाभी वो इन्तेहा भी वो फिरभी मै हु खामोश इस खामोशी के लिऐ, इस बेवफाई के लिऐ पुरी कायनात गा रही है बैन अब आंख हो रही है नम सुक रहे है ओठ क्योकी उसकेबिना जिंदगी एक खौफनाक मौत

क्रांती

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उनकी सांसे हो रही है यतीम और लोग कह रहे है मजाक है ये उनकी आवाज हो रही है गुमशुदा और लोग कह रहे है मजाक है ये रुह जानती है लढना धडकने समजते है खत्म होना फिरभी तुटती जमुरियत के वजिर-ए-आलम हरा देते है उनको हर पल हर दम इनके यहा रोने की गुनगुनाहट जनाजा भेजती है खुले बाजार मे और अब तो कफनभी महेंगा हुआ है जान से गुंज रही है सिर्फ घायालों की पुकार मुर्दाघर बन गया है हर एक मकान तो फिर जान को तो जानाही है एक दिन तो फिर क्रांती तो होगीही, खुन तो बहेगाही, गोली तो छुटेगीही फिर चाहे निशाने पे हो इनका सिना या कलंकितों का जिना मरना तो हैही लेकिन अब आसुओं के बिना