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सप्टेंबर, २०१६ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

मैं 'तू' बन जाऊ....

चेहरे की नुमाइंदगी करता ओस का बुलबुला बन जाऊ मै चेहरे की मासुमियत छुती बारिश  की  बुंद बन जाऊ पलकों को अपनी गर्म बाहो में समेटती शाम बन जाऊ मै इन आँखो की मेहेरबानी लेने रंगीन तितली बन जाऊ बालों को अपने कंधोपर लहरता हवा का झोका बन जाऊ भौह की अदाओ को समाने मैं तेरा माथा बन जाऊ तु पास होने का एहसास दिलाती तस्वीर बन जाऊ तु छुने की निशाणी, मै जमीन की मिट्टी बन जाऊ होली में तेरे गालो पर खिलता कोई रंग बन जाऊ मै तूने दिवाली में लगाया जलता दिया बन जाऊ तेरी आवाज को सुनेने मै सुमसान जंगल बन जाऊ तेरी धुंध में नाचणे मैं भी नाचती रागिणी बन जाऊ जहा तेरा आना जाना है उस गली का मैं पत्थर बन जाऊ तुजपर नजर रखे रात का चांद, दिन का सुरज बन जाऊ तू जब आये किनारे पे, तेरी ओर खिचती लहरे बन जाऊ तू भिग जाये बारिश में, में काले बादल बन जाऊ तू चले तो मैं चाल बन जाऊ तू रुके तो रुकावट बन जाऊ चीड जाये तो घुस्सा बन जाऊ तेरी हसी की मैं मुस्कान बन जाऊ तेरी जख्म का मैं मरहम बन जाऊ तेरे अश्कों का खारापन बन जाऊ तू है ओ जहाँ बन जाऊ और ना हो वहा मैं 'तू' बन जाऊ....

पिछले कुछ सात दिन

सात दिन का ये अंधेरा इतना गहरा था कि सदियों से सुरज छुपा हो बादलों के पिछे दिल पे धूल जमी थी तेरी आखों की रोशनी ने दिल फिर से साफ कर दिया तेरी आंखे ऐसी कि मानो कली ने घुंघट को हलकेसे ओढ लिया हो जब बंद होती है तो फुल पर खिले तितली कि तरहा मासूम   और खुलं जाये तो रंगो के खुशबूदार झरणे की तरहा शादाब जिसमे बह जाये कोई भी इन्ह बालो का आखो पर झुमना हवा के साथ लढना, खेलना हसना इन्ह अदाओ का कुछ हिस्सा सुबह ने दिगंत पर रखा है जहा आकाश भी नही जा सकता पिछले कुछ सात दिनो में सब रुक गया था  अब जिंदगी का एहसास हो रहा  है तेरा सामने होना दुरी के गमसे, मेरी तन्हाई के दर्दसे कहीं गुणा हसीन खूबसूरत है.. पर जाना है तुझे भी, मुझे भी वक्त की नजाकत पर चूप रहना ही ठीक होगा