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जून, २०१७ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

भेट तुकोबाची

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वैकुठवासी एक । भेटला मज वाट धरली आम्ही । पंढरीची त्याचे भलतेच साहस । म्हणे उजेड शोध मला रात्रीची साथ । तिमिरासाठी तो सांभाळे भार । स्वत:चाच स्वत: मी वाहतो भोग । चंद्रभागेत त्याचा त्यावर रोष । विटेचा सुटेना मोह मी असा शांत । माझा लोभ देहावरी त्याचा हा हट्टाहास । गोड व्हावा शेवट मी करतो आभास । सुख-दु:खांचा मी म्हणे तुकोबा। हाच का मोक्ष आता बुडवी गाथा । मोक्षासाठी तुका म्हणे विवेक । बस झाला खेळ मी करतो सुरवात । नव्या खेळाची

मै खाली किताब बन जाता हु

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जहा घर था मेरा वहा शाम आती है सुबह सुबह शाम होते ही चली जाती है मै घर की चौकट बन जाता हु कल तक खुरदरी थी जमिन, सुना है वहा नदी बहती है खत लिखने का जमाना गुजर गया मै अभी भी कलम ढुंढ रहा हु पता नही किस रास्ते पर हु पता नही हातों की लकिर है की राह कोई लकिरे नींदसी गहरी है, मै तकिया बन जाता हु, बादल छूते  है पहाड या पहाड निगल जाता है आसमान बुंदे बरसती है राहो में मैं बहता लावा बन जाता हु रोशनी पत्तोंपर कुछ लिहिती है और मिठ्ठी जमिनपर जिंदगी रंगीन स्याही है मै खाली किताब बन जाता हु हर रोज मै मिलता हु मेरे जैसे किसी अंजान से ओ मुस्कुराते हुए दुर जाता है मै कल के सोच मे डुब जाता हु

हम बेकार हो गये

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मौत से हम खफा थे, पर तुम्हारे प्यार मे हम उसीसे इश्क कर बैठे जल रहा था आसमान दिल का तुम्हारे नाम से, हम सिर्फ धुऑ देखते रह गये हमारे दर्द की बद्बू ऐसी थी की लोग दुर चले गये हम यही खुशबू सूंघते रह गये जब आग लगी थी इस शहर मे तुम ज्वाला बनकर आकाश मे मिल गये हम राख हो कर यही बस गये काम की थी जिंदगी, हम भी काम के थे तुम्हने दिल क्या तोडा जिंदगी आवारा, हम बेकार हो गये आनेवाले पल के साथ तुम चले गये अगली मंजिल पर हम गुजरते हुये वक़्त के साथ पिछेही रह गये आधी अधुरी कहाणी पढकर तुम्हने किताब बंद कर दी हम तो शायरी लिखतेही रह गये

तुम ही बताओ

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घाव गहरा है कोनसी दवा दू वार तुम्हारा था कोनसी सजा दू दिल का घर था मेरे दिल मे तुम्हने चुराया अब कोनसा पता दू आसमान खत्म हुआ है यहा तुमसे मिलने कितने पहाड मिटा दू आखे मुन्नवर इतनी सुबह रुक गयी यहा तो रात है मै कोनसा दिया दू शराबी आखे अब तडपा रही है बची हुई शराब मै कैसे लौटा दू विवेक ही गुनहगार है हम सब का तुम ही बताओ मै कोनसा फैसला दू

भुल गये

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रास्ते पर रुकना भुल गये यहा आकर रास्ता भुल गये पलके झुककर देखा तुम्हने हम मर जाना भुल गये दो पल साथ क्या चले तुम हम अकेले चलना भुल गये शिशीर मे बिखरते है सब यहा पत्ते झडना भुल गये बादलो ने सुरज को छुपाया सोहबत मे अंधेरा भुल गये आसमॉ मे जुगनू बिखरे है अभी ओ जलना भुल गये मुस्कुराकर चले गये तुम हम याद करना भुल गये विवेक इंसान था कुछ पल अब हम जीना भुल गये