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ऑक्टोबर, २०१५ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

माँ

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कभी हम भी थे बद्सुरत मॉ ने टिका लगाया, हम खुबसुरत बन गये लोग कहते है इंसानी दौड मे तुम बुढे हो गये मॉ ने माथे पे चुम लिया देखो हम फिर से बच्चे बन गये मै पढता था रातभर और माँ रोशनी जलाया करती थी यहा दिये जलते है हजारो पर ओ रोशनी नही दिखती ये रिश्ता कुछ अजिबसा है मै होता हु मायुस यहा पलके उसकी होती है गिली मेरी माँ शगुफ्ता है मेरे गम के लिये मन मे है रोती माँ, तू कौन है ? अनदेखा  विश्वास नास्तिक का, अक्स अफ्ताब का या साया कल्पनाओं का? माँ, तू है वक्त मेरे साथ दौडता हुआ माँ, तेरी गोदी मे ही  मेहेफुज था अब अकेला हु डराडरासा आना है तेरी आगोश में फिरसे रोना है दिलो-जान से माँ, तेरी लोरी में फरिश्ते आते थे सुलाने भगवान कि तस्वीरे लगाई लेकिन क्या करे, नींद ही नही आती

क्लास

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सबकुछ है मेरे क्लास में, छत है काले बादलों से बचने के लिये खिडकीया है खिलती हवाओं के लिये धरती है आंचल जैसी सवरने के लिये रोशनी है हर तरह की हर तरह के तम को दूर करणे के लिये सब कूच है मेरे क्लास में एक ओ भी है झुलाफओंसे खेलनेवाली मिठी मुस्कांनवाली कातिल अदाओंवाली उसकी आंखे जैसे ओस के मोती उसकी बाते जैसी प्यारभारी लोरी मै देखता हु उसे बेशर्म से हर पल सोचता हु कभी ना आये कल कभी कोई रोखही देता है उससे आनेवाली किरनों को मै हैराण, बद्दुवा देता हु उस हर एक शक्स को फिर भी आंखे ढुंढही लेती है ना रास्ता जैसे अब्र के बुंदे आसमान को चीर के मिल जाते है सागर को आहिस्ता आहिस्ता पुरा बदन होता है बेहोश जान छुती है उसे नजरोंसे और कभी मिलती है उसकी नजर थम जाती है धडकने रहती है सिर्फ जिस्म की चद्दर खला हु मै, खला है ये क्लास उसके बिना ये कुदरत भी खला है

बेहतरीन अद्भुत खूबसूरती

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ये कुदरत की बेहतरीन अद्भुत खूबसूरती जिसके ऊपर कायर भी हो निसार मै तो मरीज दिल का उसके नशे में, इस मैख़ाने  में कब का गया हार अब फ़रिश्ते भी आजाये ले जाने जन्नत में नहीं जाना इस कुदरत के करिश्मे को छोड़ के वो खफा हो तो भी इनायत होगी उसको देखने के लिए ही आंख इबादत है करती और जब मिलती है आंख उसकी तो भूल जाता हु सौदा जो किया था मौत से भी टूटते हुए तारे, गिरते हुए बुँदे क्या किनेंगे मेरी मुहब्बत, मेरी ख्वाईश उसकी सूरत ही है रुतबे का पैमाना यहाँ कोई रकीब नहीं है पर आशिकों का जमघट निकालता है हर सुबहा, शाम मुझे उन से भी शिकायत नहीं है है तो वो घुस्सा खुद पर बुजदिल होने के लिए डर लगता है उस खूबसूरती की क़ायनात खोने का अधिकार नहीं चाहिए चाहिए सिर्फ एहसास उसके होने का वो एहसासही काफी है जीने के लिए तो जीने  दे इस मैख़ाने में, क़ायनात में प्यार का प्यालाही बहोत है उसकी खुबसुरती पीने के लिए 

सनातन, अनादी प्रेम

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हजारो वर्षांपुर्वीच्या सुसंस्कृत संस्कृतींनी, मानवी वसाहतींनीही बघितलाय अंत त्यांचेही असतील देव धर्म अन् ग्रंथ ते मिटले तर मग आम्ही कसले सनातन अन् कसले अनादी? आम्ही तर झुलणार्‍या पाळण्यापासुनच्या जळत्या चितेपर्यंतच्या यात्रेतले अल्पजीवी. हो अल्पजिवीच कारण वैचारिक स्वातंत्र कधीच मरतय उरतय ते पाच-सहा फूटाच गुदमरणार शरीर आणि त्याच्या भोवतालची झगमगीत वलय संकुचित पुराव्यांनी सर्वांग इतक मलिन केलय की मानवताच दिसेनाशी झालीय.. केवळ हालचाल करतो म्हणुन सजीव अन् बोलतो म्हणून मानव! अश्या आवतारातला हा मानव आज पुजतोय अदृश्य अपप्रवृतींना. त्याच हे अनभिज्ञत्व, अंधत्व त्याच्या गृहीतांची प्रतिमाच जणु! प्रश्न अस्तिकतेचा नाही ना नस्तिकतेचा प्रश्न आहे तो स्वःताच्या अस्तित्वाचा जन्मापासून आलेल हे दासत्व पंगु करतय नवदृष्टी ती पंगु नवदृष्टी, हुंदक्याला आक्रोशाला दाद देणारी बुद्धी यांच्या मिलनातुन होणार तिरस्कारच करतोय कालवश सृष्टीच्या अस्तित्वाला. नकोयत ती तिरस्कार शिकवणारी गृहीते, नकोयत त्यांच्या प्रतिमा, त्या मागच्या भावना हवय ते फक्त प्रेम, प्रेमाच्या असंख्य छटांनी क

मधुबाला

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मधुबाला एक नज्म महशूर शायर की उस नज्म का हर लब्ज अभी का बिता हुआ लम्हा लगता है इस नज्म की अदा आज भी खिदमत करती है मरे हुए दिल की ये दिल भी जिन्दा है वो नज्म भी, उसके लम्हे भी जिन्दा है खो गया है तो वो जिस्म खूबसूरती तो अभीभी कब्र के बाहर है मधुबाला एक कुदरत का हसीन सपना कल के मुर्जे हुए फूल का खुशबूदार नगमा ये सपना तभी टूटता है जब आँख खुलती है ये नगमा तभी मिट जाता है जब वक़्त दौड़ता है ये आँखे तो अभीभी बंद है और वक़्त तो अपाहीच हो गया है मधुबाला एक प्यारासा साहिल जिसकी लहरे है हर नशा के कातिल उसकी बुँदे खुद ही है एक नशा का प्रतिक उस नशीली बूँदो को, उस कातिल लहरों को है अंत पर वो साहिल तो अभीभी वही है लहरों का आना जाना तो समय की चाल है आँख खुलने से पहले नया रूप लेके आ खुलती आँख को देखना है तुझे इस वक़्त को भी फिर से दौड़ना है उसको भी छुना है तुझे आ जल्दी और मेरी कश्ती को तेरे साहिल में पन्हा दे नहीं तो धड़कते दिल से, खुली आँख से डूबने तो दे