मधुबाला

मधुबाला
एक नज्म महशूर शायर की
उस नज्म का हर लब्ज
अभी का बिता हुआ लम्हा लगता है
इस नज्म की अदा
आज भी खिदमत करती है
मरे हुए दिल की
ये दिल भी जिन्दा है
वो नज्म भी, उसके लम्हे भी जिन्दा है
खो गया है तो वो जिस्म
खूबसूरती तो अभीभी कब्र के बाहर है

मधुबाला
एक कुदरत का हसीन सपना
कल के मुर्जे हुए फूल का
खुशबूदार नगमा
ये सपना तभी टूटता है
जब आँख खुलती है
ये नगमा तभी मिट जाता है
जब वक़्त दौड़ता है
ये आँखे तो अभीभी बंद है
और वक़्त तो अपाहीच हो गया है

मधुबाला
एक प्यारासा साहिल
जिसकी लहरे है हर नशा के कातिल
उसकी बुँदे खुद ही है एक नशा का प्रतिक
उस नशीली बूँदो को, उस कातिल लहरों को है अंत
पर वो साहिल तो अभीभी वही है
लहरों का आना जाना तो समय की चाल है

आँख खुलने से पहले
नया रूप लेके आ
खुलती आँख को
देखना है तुझे
इस वक़्त को भी फिर से दौड़ना है
उसको भी छुना है तुझे
आ जल्दी
और मेरी कश्ती को तेरे साहिल में पन्हा दे
नहीं तो धड़कते दिल से, खुली आँख से डूबने तो दे

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