माफीनामा

गज़लों की कायनात तो बना नही
सकता,
मजबूर हु चंद लम्हों का
माफीनामा लिख सकता हु
नुर-ए-खुदा के कदमों पे
कातिल जो हु हर लब्जों का



अंजान अंजुमन मे अजनबी
अकेलेपन के आसु आतेही है ना
गिरते हुऐ बुंदे गलती करतेही है ना
उस गिरते हुऐ बुंदों की ओर से
मै मांगता हु माफी,
उस अकेलेपन से परेशान, खुद की ओर से
मांगता हु माफी
अजनबी होने के लिऐ मांगता हु माफी
माफ कर देना
वरना ये लब्जभी खफा हो जायेंगे मुजसे


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