खुबसुरती

इस खुबसुरती की पुजा करु
या महोब्बत करु या लिखु कोई ग़ज़ल
समझ मे नही आ रहा क्या करु
पागल सा हो गया हु
गमजदा दिल मे अभी तो
जान आयी है
अभी तो इस रुह ने
नया जन्म लिया है
अभी तो अश्को ने
रुख बदला है
बादलोंने अभी तो
काला रंग लिया है
इस मोसमने मुझेभी
नया आशिक बनाया है
तो फिर कोई तो कहो
इन्ह पलकोंसे
की ना मिटे
वक्त से
की थम जाये
मुझे देखना है इसे
मरते दम तक
ओ खफा होने तक
उसका खफा होना
और मेरा मर जाना
एकही तो बात है

अब तो सहमी हुई धडकनों कोभी है उम्मिद
उसके आने की
मेरी तखईल कोभी है आस
उसको पाने की

मेरी तहरिर का इब्तिदाभी वो
इन्तेहा भी वो
फिरभी मै हु खामोश
इस खामोशी के लिऐ,
इस बेवफाई के लिऐ
पुरी कायनात गा रही है बैन

अब आंख हो रही है नम
सुक रहे है ओठ
क्योकी उसकेबिना जिंदगी
एक खौफनाक मौत

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