एक खत माओ के नाम…

दी थी आवाज मैने भी
आमार बारी तोमार बारी, नक्षलबारी
मैने भी मनाये थे नंगे जश्न काले सन्नटो मे
बहाया है खून खुद का और दुसरो का भी
मेरे भाई मेरे दोस्त सब बन गये
मालक-उल-मौत
पर कब तक जिते गा खौफ
पता नही
अब मुखर रही ही खुद से खुद की जान
एक खत माओ के नाम…



गुंगे की आवाज को अन्वर करते करते
अब खुद ही बन गया हु गुंग
खडे हुये रोंगटे अब नही सभलते
काले हात कत्ल करके भी
ढूढ रहे है मोती कोयले की खाण में
क्या इसी लिये छोडी थी मासूमीयत ?
इसी लिये किया था नरसंहार?
अब हसी को भी पता नही है राम
एक खत माओ के नाम…

और एक बार गुंजे गी क्रांती की पुकार
उसके सोहबत मे गायेंगे गीत हजार
होंगे प्यार के लब्ज साथ
समशेर तो अभीभी होगी कटु
पर दुसरे हात मे होगा गुलाब मृदू
हिंसा को मुहब्बत सिकायेंगे
जुलूम को जलता दिया दिखायेंगे
मिलकर करेंगे काम
एक खत माओ के नाम…

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