आजादी

मै एक सर्वसाधारण विद्यार्थी हु। मुझे इस पर बोलने का कितना अधिकार है मै खुद नही जानता पर आज मेरी खामोशी भी चिल्ला रही है। तो सोचा आज लिखही दु कुछ।
मै साम्यवाद, मार्क्सवाद से भलेही प्रभावित हु फिर भी भाजपा और संघ को हमेशा विरोध करनेवाला अंधा युवा नही हु।
दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र देश का जो सबसे बडा हिस्सा है ओ किसान आज मर रहा है.. उसी लोकतंत्र में आजभी महिला उनके अधिकार के लिए लढ रही है। और ये लोकतंत्र जिसके कंधोपर खडा है ओ युवा भी आज झगड रहा है, मर रहा है, मारा जा रहा है। तो फिर ये कहा का लोकतंत्र देश है, जिस में सब लोग अपने अधिकारों के लिए लढ रहे है, लढने की आजदी के लिए लढ रहे है?
आज तो मजदुर साल का पचास हजार कमा रहा हो ओ अपने बच्चे के शिक्षा के लिए कहॉ से लाख रुपए लायेगा? क्या ओ इतनासा भी सपना देख नही सकता?
मुझे सन्मानपुर्वक जीने की आजदी चाहिये। मुझे चाहिये जुल्म के खिलाफ लढने की आजादी। मै भी देशप्रेमी हु। मुझे ना इस देश से आजादी चाहिये ना इस देश का बटवारा करने की आजादी चाहिये.. मुझे तो बस देशवासीओं के सन्मानपुर्वक जीने की आजादी चाहिये। मै मांग रहा हु आजादी उस किसान के उज्वल भविष्य की। मै मांग रहा हु आजादी उन्ह खुल के जीने की। मै मांग रहा हु आजादी उस मजदुर के सपने देखने की। और मै मांग रहा हु छात्रों के लढने की आजादी। और ये मांगने की आजादी मै मांग रहा हु। अभी तो मै मांग रहू लेकीन छिनकर लेना भी जानता हु। पर मै कमजोर हु, डरता हु.. मै ना उन्ह लाठी का सामना कर सकता हु ना उनको जवाब दे सकता हु। पर मेरी कलम ही है एक हतियार। मै इतना तो कर सकता हु।
मै थोडा परेशान था। इसका अंत मे कोनसा नारा लिख दु| क्युकी हमने हमारे दिल को इतना छोटा किया है की अब ओ भी नारों मे भी भेद कर था है। फिर सोचा रहने दे नारा ही लिखना।
विवेक जाधव
आइसा

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