खामोशिया

वक्त खामोश है,
इस रात से अलग होकर
जिसने चांद की चाह में गगन का रूप लिया है
उस दिल की तरहा,
सदिओ पुरानी है ये चाहत
और 
सदिओ से चलती आ रही है ये अमावस 

शांत हो गयी है
अब दोनो की धडकने,
बादल भी थम गये है कही,
जिसपर हवा का आना-जाना था
ओ चंचल लहरे भी रुक गयी,  
आकाश में चमकती तितलियों ने भी
अब पलके मिटा दी 

दर्द की दर्दभरी दास्तान
ले कर जी रहे
वक्त से मैं क्या बोलूं?
कैसे कहू,
क्यू खामोश है तू भी?
उसने भी सजाई है मेहफिले हजारो,
उसने भी हर कब्र पर  है आसू बहाये 

मेरी खामोशिया तो 
उन्ह लब्जो की नाराजगी है
जिने कोई सुनता नही,
मेरी खामोशिया
उन्ह आसुओ कि रुसवाई है 
जिनको कोई देखता नही,
तू भी नही  
 
मैं तो कहा देखा है 
वक्त के अश्को को,  
वक्त के अल्फाज को
सुनेने की कोशिश भी नही की कभी 
शायद वक्त मायूस है
मेरे से, 
मेरी तरहा

पर दोनो का साथ चलाना अनिवार्य है
वक्त भी चल रहा है
और मैं भी,
अब तू भी चल दो कदम
मेरे साथ.. 
तेरे साथ में
खामोशिया खामोश हो जाती है 



 

टिप्पण्या

या ब्लॉगवरील लोकप्रिय पोस्ट

हम इंसान बन गये..

It's not good bye.. It's see you later..

Atheist having spiritual experience