थक गये

इस आंगण में दिया जलाते जलाते थक गये
दो दिवारों की रखवाली करते करते थक गये

बहरूपियों का मुखौटा लेने निकले थे घर से
साफ आईने की सुरत देखते देखते थक गये

बदतमीजी से भी शराब नही पी हमने कभी
शराफत से तेरी ये दवा पिते पिते थक गये

मुहावजा मांग रहे है ये कटे हुये फुल मुजसे
उन्ह में हम खुनी रंग भरते भरते थक गये

मंजिल नही बदली बस कब्र अलग है आज
तेरे इश्क का कफन पहनते पहनते थक गये

इसी जगहा पैदा हुआ था विवेक कल परसो
यहा मोहोब्बत में तेरे मरते मरते थक गये 

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