एक क्लास

नींद नही आती आज कल
आखो मे जो धुआ था
आज बर्फिली धुप बन गया
इतना प्यारा नगमा है की
ये पलके भी मिटती नही आज कल
ऐसा लगता है जजिरा मिल गया
जहा जुगनु की रंगीन ‘रोशनी’ से
‘सृष्टी’ झुम जाती हो
जहा हरियाली इतनी सजी हो की लगे
‘पूजा’-पाठ कर रही है दिगंत पर
जहा ‘शुभांगी’सी हसीन शजर अपनी खुशबू को
‘मल्लिका’ के गंधसी गुजरते पलों मे मिला ती हो
जहा चांद का जमाल भी ऐसा उतरता हो जमिन पर
जैसे ‘अरुषी’ आती है सुरज से
जहा ‘निशी’ के साथ बेखौफ हो रंजनीगंधा जो जिवित है ‘आयुशी’ की तरहा,
बेहती है कस्तुरीसी
जहा हो ओस की ‘मिहिका’, झरने की जीवीका
जहा हो आशियाना ‘अनिकेत’ की शाश्वती से भरा
जहा दवाग्नी भी ‘प्रार्थना’ करता हो मेघाओं के राजा ‘मेघन’ से
जिसकी ‘आस्था’ ‘राघव’ के जिवनसी पवित्र है
जहा सबको हो स्मरण खुद के ऐहसास का
जिसे ‘सिमरन’ कहते है
जहा हो ‘अभिरुची’ शांती की, ईच्छा ‘मनिष’ की, सुंदरता ‘प्रियांका’ की
जहा हो ‘मेहेक’ खेतों मे खिले पिले सोने की, शहदसी मधुरता हो ‘मधुनिका’ की
जहा हो तेज ‘आदित्य’ का, मन ‘मानसी’ का, सुर ‘सानिका’ का
जहा हो 'कबीर'सा कोई संत जिसका ना हो कोई ईमान,
जिसका जीवन एक आत्मध्यान
जहा हर काम हो ‘करण’ जो पुरा हो इंसानी हातों से
जहा कदम चलते हो ‘सिद्धार्थ’ के मार्ग पर
जहा ना हो कोई परिभाषा ‘श्रेय’, ‘यश’ की
जहा ‘क्रितिका’ नक्षत्र भर देता हो
रंग काले अंधेरो मे भी
जहा मलबा भी हो खुबसुरत, कठोर
‘अर्पना’सा
जहा हो शौर्य ‘श्रेतिमा’ का, धैर्य ‘सौम्या’ का
जहा हो हसीन तस्विरों का चयन ‘चयनिका’ की तरहा
जहा हो मुख्तलिक हर इक पर अनुठापन हो ‘प्राची’ का
जहा बजती हो 'अभीर' की बासुरीं
मोहित हो जाये गोपिया सारी
जहा आनंद मरते नही हो बस प्यारभरी ‘हर्षी’ आती रहे
जहा ना हो पाबंदी ना सरहद्दे ना कोई दिवार
मुक्त असीम ‘विशाल’ हो सब ‘अदिती’ की तरहा
जहा हो ‘अर्जुन’ के तीर का प्रखर पर उतनाही ‘विनय’ उजाला
जहा हो शस्त्र ‘भार्गव’ का लेकीन
खिलती हो शांती ‘अखिल’, अनंत विश्व मे
जहा हो ‘त्रिशा’ खुद का ख्वाब देखने की
जहा गिरती हो गंगा आसमान के ‘आंचल’ से
जहा हो ‘जिज्ञासा’ सृजनात्मक, ‘प्रगती’ रचनात्मक
जहा हो जय ‘जयराज’सा, 'अभिजय' हर एक अच्छी चिज का
जहा स्थायी हो कुछ तो ओ हो वेद के ‘वेदिका’ की तरहा
जहा ‘श्रेया’ के कदमों के निशाण हो
जहा ‘राजश्री’ खुद हातों से राज बनाती हो
जहा हो सौदा ना होनेवाला प्यार जिसका कर्ता है ‘प्रितिश’
जहा गुंजता हो ‘प्रणव’मंत्र हर इक सुबहा
जहा बिखरा हो ‘नारायण’ का हर कण, कण में
जहा हो सब ‘आशिष’ शापित जंगलो मे भी
जहा खून दौडता हो नसों मे जो हो ‘अक्षत’सी अखंडित
जहा हो सच की शिघ्रता ‘सुमेधा’ की तरहा
जहा हो ‘सोहम’.. सोहम का एक ‘सिद्धांत’..
जहा स्फटिकसा ‘मुबीन’ हो इश्वर भगवान अल्लाह
जहा वसुंधरा का आकार हो
‘तन्वी’ के तनयसा अद्भुत, मुलायम
जहा हर एक रुप हो सुरुप ‘अलेफिया’सा
जहा बारीश बरसती हो ‘तनिमा’ की अदाओंसी
जहा हो सच्चा रिस्ता, बंधन दोस्ती का
जो है ‘मितुल’
जहा चिरंजीव रहने की ‘अनुष्का’ हो
जहा ना हो अंतर भाषाओ मे
मिल जाये हर्ष मे ‘अनिंदो’ आसानी से
जहा हो सब सुखकारक
लक्ष्मी भी आये सगुणा के संग
जहा हवा लिखती हो ‘गजल’ मिट्टी से धरती पर.....
कुछ ऐसा है ये नगमा
इसमे ना मै हु ना ‘विवेक’..
हम दोनो का ना होना अच्छी बात है

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