तलाश

तलाश अभीभी है
तलाश अभीभी है उसकी
जिसकी आंखो मे
वसंत का तेज गुजारा करता हो,
पलके मिट जाये तो लगे शिशिर आ गया
खुल जाये तो लगे दिया जल गया

जिसकी आवाज मे हो हूर की अदा
जिसके माथे पे सुबह करती हो सजदा



जिसकी चाल हो झरने सी
चले तो ले चले रूह को
रूके तो रोक ले नूर को

जिसके जिस्म पर जलते है हजारो चिराग
जहा मिल जाये पहेली रोशनी का सुराग

तलाश है इक जिस्म की
तलाश है इक रूह की
तलाश है इक दिल की
तलाश है उसकी
जिसे ढुंढते ढुंढते
ये दिन भी गुजर जायेगा...

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