सरहद

उसे देखकर हर चीज
पिघलती है
सरहद को शायद
कोई चेहरा नही है

अंधेरा गहरा है सरहदपर
उसे देखना है तो रोशनी चाहिये
मै दिया जलाने जाता हु वहा
यहा जंग पुरी बस्ती जला देती है

फुलोंसे भरा गुलदान भेजता हु
उसे कॉटों की माला मिलती है
सरहदपर अक्सर गोलीओं की
आवाज सुनाई देती है

अभी कही ये कहाणी
शुरू की है
लेकीन यहा आतिश-जनो की
कमी नही है

बहुत सारी कहाणीया मिटाई है
ये भी मिट जायेगी कभी
अभीभी है उन्ह कहाणीयों के निशाण
इस कहाणी की भी यही कहाणी है

क्यु है ये प्यार अंधा
क्यु ये नफरत है गुंगी-बहरी
‘ओ’ कुछ देखता नही
और.. ‘ओ’ कुछ सुनती नही है

पता नही इस ‘जंग’ मे
कौन जितेगा
पूँछ की तरहा जब दिल नही होगा
तब पता चलेगा

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