यहा इंसान इंसान बन जाता है.

दो सासो के बीच का ये ठहराव
यहा कही खो गया है..
धडकनों ने यहा लहरों का पहनावा
पहन लिया है..
यहा ना कोई सरहद है,
ना है इंसानी दिवार..
यहा है जिंदगी के अंग बेशुमार..


फिर भी कुछ अधुरा है,
सागर से दुर जानेवाली भाप का अधुरापन,
आसमान मे बुजनेवाले चिरागों का अधुरापन,
कही ओर रहनेवाली जिंदगी का अधुरापन..
रात ऐसेही बढती रहती है
सुबह के इंतेजार मे..
उस रात का अधुरापन..
इन्ह सब मे मै हैराण हो गया हु..
ठंडी हवा बह रही है या कोई छु रहा है?
बादल शर्मा रहे है या ओढनी उड रही है किसी की?
यहा सच मे अंधेरा है या मेरी ही ऑखे बंद है?
मै सच मे हैराण हु..
यहा कौन अनंत है?
थोडी दुरी पर आसमान का अंत है
मेरे दिल मे भी एक दिगंत है
वक़्त के साथ अफताब भी यहा रुक जाता है
यहा जिंदा रहकर भी इंसान इंसान बन जाता है.

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