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हमारी समझदारी

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हमारी गुस्ताख़ी थी उस नजर को इक़रार समझ बैठे हमारी समझदारी थी उन्हें समझदार समझ बैठे हमारी आशिक़ी थी ओ हमें बेकार समझ बैठे हमारी खामोशी थी ओ इश्क़ को झूठ समझ बैठे हमारी जिंदगी थी ओ मज़ाक समझ बैठे इस मज़ाक को हम जिंदगी समझ बैठे उनकी समझदारी समझदारी थी हमारी समझदारी को हम समझदारी समझ बैठे

मैं 'बंद' कमरे में 'आज़ाद' हूँ.. Girl Without A Face

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हर मंगलवार मोहल्ले में ख्वाबों का मेला सजाता है... हर मंगलवार कोई बाहर से दरवाजा बंद करता है... मैं आईने के सामने बालों से खेलती रहती हूँ... मैं बंद कमरे में आज़ाद हूँ खिड़की के बाहर आसमान छूते गुब्बारे देख मैं भी छलांग लगाती हूँ... मेरा आसमान छत है मैं दीवारों से टकराती हूँ... फूट जाते है गुब्बारे मैं फिर से खड़ी हो जाती हूँ... मैं बंद कमरे में आजाद हूँ दीवारों के उस पार मुझे जाना है, मैं बार बार टकराती हूँ... उस में दरार आती है, मैं भी घायल होती हूँ... ‘वे’ दीवारों की मरम्मत करते है, मैं मेरी चोट सहलाती हूँ... मैं बंद कमरे में आज़ाद हूँ मैं 'बंद' कमरे में 'आज़ाद' हूँ, मैं कमरे में 'बंद', 'आज़ाद' हूँ.. इकहत्तर साल हो गए, मैं यही हूँ... बाहर से दरवाजा बंद है, और मैं अंदर से घायल हूँ... मैं युही टकराती रहूँगी, कोई दरवाजा खोले या ना खोले, ये दीवार जरूर गिराऊंगी... मैं 'बंद' कमरे में 'आज़ाद' हूँ, मैं कमरे में 'बंद', 'आज़ाद' हूँ..

ये दिल्ली काश तू इंसान होती..

ये दिल्ली काश तू इंसान होती तुझमे भी बाईं तरफ दिल होता मुम्बई, हैदराबाद, बैंगलोर से या फिर श्रीनगर, इस्लामाबाद या लाहोर से तुझे भी प्यार हो जाता ये दिल्ली काश तू इंसान होती तुझमे भी बाईं तरफ दिल होता ये दिल्ली काश तू इंसान होती किसी बच्चे की तू मा होती फिर ‘इंच इंच’ के लिये तू युह ना लढती खुद का बच्चा भुका रखकर तू तू दुसरों के बच्चे युह ना मार देती ये दिल्ली काश तू इंसान होती तुझमे भी बाईं तरफ दिल होता ये दिल्ली काश तू इंसान होती दुनिया देखने के लिये दो आखे होती जिन्हो ने आपने खोए है किसी दंगे मे उन्हके आसू देख पाती सिर्फ मुआविज़ा देकर पराया ना करती ये दिल्ली काश तू इंसान होती तुझमे भी बाईं तरफ दिल होता ये दिल्ली काश तू इंसान होती हर चुनाव मे हात की किसी उंगली पर काली स्याही लगवाने का दर्द समझ पाती तू मेरी भी तकलीफ समझ पाती ये दिल्ली काश तू इंसान होती तुझमे भी बाईं तरफ दिल होता Incomplete...

India-भारत

कुछ मकान आसमान को छू लेते है कुछ लोग आसमान को ही छत बनाते है खुलती है Starbuks, CCD की दुकाने कदम कदम पर अस्पताल से दूर हर दिन कुछ लोग मर जाते है कुछ लोग hair oil मे protein ढुंढते है यहा कुछ बच्चे protein के बिना ही जी लेते है Front page पर छपती है खबरे Indian Premier League की अफबारवाले भारतीय किसान मोर्चे की black and white तस्वीरे आखरी पन्ने पर चिपकाते है India की अमीरी मे लोग खाने का शौक रखते है भारत की गरीबी मे लोग भूखे सो जाते है

आजतक

आजतक कभी आसमान मे टुटता तारा नही देखा मैंने उसकी आखो मे काजल फैलते हुए देखा... मैंने उसकी आखे देखकर मन्नते मांगी है आजतक कभी मैंने पुनम का चांद नही देखा मैंने उसके माथेपर बिंदी को चमते हुए देखा मैंने उसकी बिंदी देखकर गझल लिखी है आजतक कभी लावा बहते हुए नही देखा मैंने उसके गालोंपर गुलाब खिलते हुए देखा उस गुलाबी रंग ने मेरी ज़िंदगी सजाई है आजतक कभी हवॉ मे सासों को तैरते हुए नही देखा मैंने उसकी आवाज को मुझे छुकर जाते हुए देखा मैंने उसकी आवाज सुनते सुनते ज़िंदगी गुजारी है

कुछ चीखे

आज कल कुछ चीखे मुझे सोने नही देती सपनों मे आकर उन्हका हक्क मांगती कुछ चीखे मुझे सोने नही देती मै उठ जाता हु घर से बाहर निकलता हु बाहर भीड की आवाजे मुझे जीने नही देती आज कल कुछ चीखे मुझे सोने नही देती बहन की बेटी के लिये मैंने खिलोना खरीदा था आज उसकी खामोशी मुझे बोलने नही देती आज कल कुछ चीखे मुझे सोने नही देती मुझे पता नही क्या होगा लेकीन इतना बता दू जो कुछ शेष बचेगा मुझे ढंग से मरने नही देगा... जो कुछ शेष बचेगा मुझे ढंग से मरने नही देगा...

Unknown...

दुर रहकर भी ऑखो मे बस जाता है उसका चेहरा आसमान बन जाता है ओ बाते बिना सोचे समझे करती है उसे क्या पता ‘ये’ सासे ‘उन्ह’ बातोंपर चलती है ओ ढूंढ रही है मृगतृष्णा रेगिस्तान मे और यहा मेरी आखे दरीया बन जाती है दिया जलाने का बहुत शौक था मगर उसका साथ हो तो यहा रात दिखती नही है अब ओ नही है यहा मिट्टी बार बार बता रही है फिर भी न जाने क्यु हवा खाक छान रही है