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आधी गजल

निंद को लिपटकर सोता हूँ मै जैसे तुम्हे बाहो मे लेता हूँ मै बिखर गया है यादों का ढांचा जोडकर उन्हे कंकाल बनाता हूँ मै तुम्हारे घुस्से की लत लग गयी तुम्हारी आवाज मे डाटता हूँ मै तुम सिर्फ तुम , और कुछ नही कुछ ऐसा ही नशा करता हूँ मै मंदिरों मे बंद खामोश है ‘ विवेक ’ और तुम्हे मेहसूस करता हूँ मै continued

अनाज की चोरी

मेरा पिछवाडा दिवार के कोने इतना सार्वजनिक हो गया है कोई भी आकर थुकता है मुतता है.. मेरे से अब शराफत की उम्मिद मत रखना और शरीफ बनना ही क्यों है? अगर कल का खूनी आज थानेदार बन सकता है कल का गधा आज सरदार बन सकता है तो याद रखना शराफत का कोई भविष्य नही है... और ऐसे भी जो शराफत खुद के पेट की भूख मिटा नही सकती ऐसे शराफत से दूर चोर बनना ही ठीक है और तुम भी कमाल करते हो... मेरे जैसे चोर की पिटाई करते हो और हरे भरे सावकारों को सर पे बिठाते हो.. ऐसा करने के बाद भी अगर तुम शरीफ हो तो ऐसे शराफत से दूर चोर बनना ही ठीक है

भय है मेरा

सुबह अखबार से रात मे न्युज़ चॅनलों से राष्ट्रवाद पढ रहा हूँ ये भय है मेरा तुम्हारे राष्ट्रवाद से डरता हूँ रास्ते मे गाय दिख जाये तो प्रणाम करता हूँ हर एक झंडे को मै सलाम करता हूँ राष्ट्रगान की धुन सुनाई दे मै वही खडा रहता हूँ ये भय है मेरा तुम्हारे राष्ट्रवाद से डरता हूँ भूखमरी को मै झूठा साबित करता हूँ रामलीला पर बैठे बुढों को मै राष्ट्रद्रोही कहता हूँ नुक्कडपर बेकार युवाओं को विकास दर समझाता हूँ ये भय है मेरा तुम्हारे राष्ट्रवाद से डरता हूँ 26 जनवरी, 15 अगस्त को दिलोजान से भारत माता की जय चिल्लता हू जो चिल्लता नही उसे मा बहन की गाली देता हूँ ये भय है मेरा तुम्हारे राष्ट्रवाद से डरता हूँ मै डरपोक हूँ सीमापर शहिद नही हो सकता लेकीन ऐसे ही कही पुल टुट जाये या कही इमारत गिर जाये मै मरने के लिये तयार हूँ ये भय है मेरा तुम्हारे राष्ट्रवाद से डरता हूँ

मरुस्थल के वंशी है

मरुस्थल के वंशी है हम खेतों में बसते है... धृतराष्ट्र का अंश है जिन में सरकारे बनाते है गांधारी की पट्टी लिए विपक्षी दूसरी ओर खड़े है द्रौपदी बने हम सदियों नंगे है हम खेतों में बसते हैं मरुस्थल के वंशी है हम खेतों में बसते है... काँटों से दोस्ती है हमारी बारिश हमारी माता है धूप की गोद मे खेलते है हम खेतों में बसते हैं मरुस्थल के वंशी है हम खेतों में बसते है... विज्ञान की प्रगती देखो चाँद पर पानी ढूंढा हमारे नसीब में बस रेत मिट्टी और पत्थर मिला हम सदियों से प्यासे है चलो चाँद पर खेती करते है हम खेतों में बसते हैं मरुस्थल के वंशी है हम खेतों में बसते है...

Day one...

जहाँ डूबता है सूरज वहीं से निकलता है कभी? दिल जो तोड़ते है उनसे दिल जुड़ता है कभी? निकलता होगा चाँद रात में रात में चोर निकलता है चोरी किया हुआ दिल कोई लौटाता है कभी? मैं मुझ में ही कैद हूँ लेकिन क्या करूँ खुद से ही कोई बगावत करता है कभी?

हमारी समझदारी

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हमारी गुस्ताख़ी थी उस नजर को इक़रार समझ बैठे हमारी समझदारी थी उन्हें समझदार समझ बैठे हमारी आशिक़ी थी ओ हमें बेकार समझ बैठे हमारी खामोशी थी ओ इश्क़ को झूठ समझ बैठे हमारी जिंदगी थी ओ मज़ाक समझ बैठे इस मज़ाक को हम जिंदगी समझ बैठे उनकी समझदारी समझदारी थी हमारी समझदारी को हम समझदारी समझ बैठे

मैं 'बंद' कमरे में 'आज़ाद' हूँ.. Girl Without A Face

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हर मंगलवार मोहल्ले में ख्वाबों का मेला सजाता है... हर मंगलवार कोई बाहर से दरवाजा बंद करता है... मैं आईने के सामने बालों से खेलती रहती हूँ... मैं बंद कमरे में आज़ाद हूँ खिड़की के बाहर आसमान छूते गुब्बारे देख मैं भी छलांग लगाती हूँ... मेरा आसमान छत है मैं दीवारों से टकराती हूँ... फूट जाते है गुब्बारे मैं फिर से खड़ी हो जाती हूँ... मैं बंद कमरे में आजाद हूँ दीवारों के उस पार मुझे जाना है, मैं बार बार टकराती हूँ... उस में दरार आती है, मैं भी घायल होती हूँ... ‘वे’ दीवारों की मरम्मत करते है, मैं मेरी चोट सहलाती हूँ... मैं बंद कमरे में आज़ाद हूँ मैं 'बंद' कमरे में 'आज़ाद' हूँ, मैं कमरे में 'बंद', 'आज़ाद' हूँ.. इकहत्तर साल हो गए, मैं यही हूँ... बाहर से दरवाजा बंद है, और मैं अंदर से घायल हूँ... मैं युही टकराती रहूँगी, कोई दरवाजा खोले या ना खोले, ये दीवार जरूर गिराऊंगी... मैं 'बंद' कमरे में 'आज़ाद' हूँ, मैं कमरे में 'बंद', 'आज़ाद' हूँ..