साहिल

उस ओर भी इक साहिल है
वहा से मै कुछ और ही हू
मै मेरे अंदर बसे मेरेपन को मेरे इतना जानता हू
उससे भी अलग हू
कौन धोखा खा रहा है?
ये नजर या ओ साहिल?
कुछ सवाल अनकहे
तो कुछ जवाब अनसुने होते है


इस रेत की तरहा
बेशक इनको जुबाने होती है
पर ये बाते नही करती
सिर्फ ये लहरे कुछ बोल रही है
मै सून नही पा रहा
कुछ अपनासा है इस में
मै महसूस नही कर रहा
इनका शोर खामोश कर रहा है मुझे
ये साजिश है या कोई इत्तेफ़ाक या है लहरों की आवरगी?
अब ढुंढते ढुंढते उस ओर आ रहा हु
शायद फलक तक जाना पडेगा 

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