क्यु है

कोई नही है यहा
लेकीन हलचल यहा ही है
वहा सब है
फिर ओ जहॉ सुना क्यु है?

मिट्टी है बेबस
रुठी है शजर
बंजर जमिन है
फिर भी यहा बाढ क्यु है?

ना कभी देखा है खुदा
ना महसूस किया है कभी
लेकीन डरता हु मै भी
फिर इतने फरिश्ते क्यु है?

कही मिर्झा है
तो कही लैला
गालिब की शायरी भी है
फिर इतनी नफरत क्यु है

कितने मिम्बर है हर जगहा
कितने बाते करते है लोग वहा
मै भी सुन रहा हु
फिर इतनी खामोशी क्यु है?

धुऑ धुऑ हुआ है अब
हर तरफ सिर्फ कब्र कब्र और कब्र
कातिल ही करते है फैसला
फिर इतने मुन्सिफ क्यु है

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