मै बस निकल ही रहा हु

मै बस निकल ही रहा हु..

तुम्हारे बाल,
जो हवा बनकर
मुजसे गुफ्तगू करते थे
उन्हसे कुछ बाते करनी बाकी है..
तुम्हारी बिंदीया
जो चांद बनकर
मुझे गुमराह करती थी
और थोडा गुमराह होना बाकी है
इतना मुझे करने दो
मै बस निकल ही रहा हु..

एक कविता जो अधुरी थी
पुरी करनी बाकी है
सोचा था उसे
बारीश के बुंदो से,
आंधी की बेचैनी से
मै सजादुंगा...
लेकीन लेकीन..
यहा ना आंधी आयी ना बारिश..
बस उन्ह की राह देख रहा
उन्हके आने के बाद,
कविता पुरी करने दो
मै बस निकल ही रहा हु...



कुछ सासों का हिसाब बाकी है..
तुम्हारी बातोंसे, तुम्हारे एहसास से
तुम्हारी धडकनों से जो कुछ लिया है
ओ वापस करना बाकी है
हिसाब करके
जितनी देनी होगी उतनी सासे
तुम्हारे दिलपर रखने दो
मै बस निकल ही रहा हु..

कुछ कहाणीया
जो सच्चाई के पीछे छुपकर
मुझे बहका रही थी
फुलों को महका रही थी
उन्हसे सच्चाई जानना बाकी है
सच्चाई जानना बाकी है
ये उलझन समझने दो
मै बस निकल ही रहा हु

दुर जाने से पहले
थोडा रुक जाओ
तुम्हारे जाने से पहले
मै खुद ही निकल रहा हु

मै बस निकल ही रहा हु

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